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पिंडनियुक्ति
२७/२
२८
२९, ३० ३१, ३२
३९, ४० ४१, ४२ ४३, ४४ ४४/१-४
४५/१
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नदी में दृति स्थित वायु के पुन: सचित्त होने का कालमान। अचित्त वायुकाय का प्रयोजन। वनस्पतिकायपिंड के भेद-प्रभेद। अचित्त वनस्पतिकाय तथा उसका प्रयोजन । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय आदि के पिंड। विकलेन्द्रिय का प्रयोजन। चतुरिन्द्रिय में अश्वमक्षिका का उपयोग, पंचेन्द्रिय में नैरयिक अनुपयोगी। पंचेन्द्रिय तिर्यंच का उपयोग। सचित्त आदि तीनों प्रकार के मनुष्यों का उपयोग। देवता विषयक उपयोग। मिश्रपिंड के विविध संयोग कृत भेद। क्षेत्रपिंड तथा कालपिंड का विवरण। भावपिंड के भेद। प्रशस्त एवं अप्रशस्त भावपिंड के भेद। प्रशस्त-अप्रशस्त भावपिंड के लक्षण। ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि के पिंड। भावपिंड की परिभाषा एवं उसका निरुक्त। प्रस्तुत प्रकरण में अचित्त पिंड का अधिकार। ज्ञान, दर्शन आदि का कारण आहार। मोक्ष की सिद्धि के हेतु ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि। एषणा के स्वरूप-कथन की प्रतिज्ञा । एषणा के एकार्थक। एषणा के निक्षेप तथा द्रव्य और भाव एषणा के प्रकार। एषणा, गवेषणा, मार्गणा और उद्गोपना आदि शब्दों की अर्थ-मीमांसा। भावैषणा के प्रकार। एषणा के तीनों प्रकारों का मान्य क्रम। गवेषणा के नाम आदि निक्षेप। द्रव्य एषणा में कुरंग एवं गज का दृष्टान्त । उद्गम के एकार्थक तथा उसके निक्षेप। भाव उद्गम के प्रकार। द्रव्य उद्गम का विवरण। द्रव्य उद्गम में लड्डुकप्रियकुमार का कथानक। उद्गम की शुद्धि सै चारित्र की शुद्धि।
४७,४८ ४९,४९/१ ४९/२
५०
५२ ५२/१,२ ५२/३ ५२/४ ५३ ५३/१-५५
५६
५७ ५७/१ ५७/२-४ ५७/५
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