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पिंडनियुक्ति
कृतज्ञता-ज्ञापन
गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी हर क्षण इसलिए स्मृति में रहते हैं क्योंकि उन्होंने समय के मूल्य को आंकने की प्रेरणा दी। पूज्य आचार्यप्रवर एवं युवाचार्यवर ने यात्रा आदि कार्यों से मुक्त रखकर मुझे आगमकार्य में नियुक्त ही नहीं किया वरन् शक्ति-संप्रेषित करके अनवरत ऊर्जावान् भी बनाए रखा। उनके चरणों में तो मैं केवल निम्न पद्य ही अर्पित कर सकती हूं
यदत्र सौष्ठवं किञ्चित् , तद् गुर्वोरेव मे न हि।
यदत्रासौष्ठवं किञ्चित् , तन्ममैव तयो न हि ॥ महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी की स्नेह भरी दृष्टि मुझे निराशा से मुक्त रखकर सतत सक्रिय बनाए रखती है। आदरणीय मुख्य नियोजिका विश्रुतविभाजी एवं नियोजिका समणी मधुरप्रज्ञाजी की सम्यग् व्यवस्था से यह कार्य सुगमता से सम्पन्न हो सका। शारीरिक दृष्टि से कमजोर होते हुए भी साध्वी सिद्धप्रज्ञाजी का मनोबल अत्यन्त मजबूत है। नियुक्ति और भाष्य के पृथक्करण में जहां भी कठिनाई का अनुभव हुआ, उन्होंने मुक्त हस्त से सहयोग किया है। जैन विश्व भारती के अधिकारीगण और व्यवस्थापकों का सहयोग भी मूल्याह रहा है। कम्पोजिंग एवं सेटिंग में कुसुम सुराना का श्रम मुखर है। अन्त में मैं समणीवृंद के प्रति आभार ज्ञापित करती हुई श्रुतदेवता के चरणों में भावभीनी श्रद्धा अर्पित करती हूं, इस दृढ़ संकल्प के साथ कि संघ और संघपति के श्रीचरणों में शीघ्र ही नियुक्ति का अगला खंड समर्पित कर सकू।
डॉ. समणी कुसुमप्रज्ञा
१४.४.२००८ जैन विश्व भारती, लाडनूं
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