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पिण्डनिर्युक्ति : एक पर्यवेक्षण
२. मुर्मुर - आपिंगल रंग के अर्धविध्यात अग्निकण मुर्मुर कहलाते हैं ।
३. अंगारा - ज्वालारहित अग्नि अंगारा कहलाती है।
४. अप्राप्तज्वाला-' -चूल्हे पर स्थित भाजन, जिसको अग्नि का स्पर्श नहीं होता, वह अप्राप्तज्वाला
कहलाती है।
५. प्राप्तज्वाला - पिठरक का स्पर्श करने वाली अग्नि प्राप्तज्वाला कहलाती है ।
६. समज्वाला - जो बर्तन के ऊपरी भाग तक स्पर्श करती है, वह समज्वाला कहलाती है ।
७. व्युत्क्रान्तज्वाला - जो अग्नि चूल्हे पर चढ़े बर्तन के ऊपर तक पहुंच जाती है, वह व्युत्क्रान्तज्वाला कहलाती है ।
सचित्त पर सचित्त निक्षेप की तरह मिश्र पृथ्वी पर सचित्त पृथ्वी, सचित्त पृथ्वी पर मिश्र पृथ्वी तथा मिश्र पृथ्वी पर मिश्र पृथ्वी का निक्षेप होता है। इसी प्रकार सचित्त और मिश्र के साथ अचित्त पर निक्षेप की चतुर्भंगी भी होती है। इन तीन चतुर्भंगियों में अचित्त से सम्बन्धित चतुभंगी के चौथे भंग में भक्तपान ग्राह्य होता है।
जहां सचित्त, अचित्त अथवा मिश्र द्रव्य पर निक्षेप होता है, वहां अनंतर और परम्पर दो प्रकार की मार्गणाएं होती हैं । षड्जीवनिकाय का अनंतर और परम्पर निक्षेप इस प्रकार होता है- जहां सचित्त पृथ्वी पर बिना किसी अन्तराल के साक्षात् वस्तु रखी जाती है, वह सचित्त पृथ्वीकाय का अनन्तर निक्षेप है। इसी प्रकार पृथ्वी पर रखे पिठरक आदि पर निक्षेप होता है, वह परम्पर निक्षिप्त है। मक्खन आदि सचित्त जल में रखा है, वह अनंतर निक्षिप्त तथा नदी - जल में स्थित नाव में रखा नवनीत परम्पर निक्षिप्त कहलाता है।* वायु द्वारा उड़ाया गया धान्य का छिलका अनंतर निक्षिप्त तथा वायु से भरी वस्ति पर निक्षिप्त वस्तु परम्पर निक्षिप्त होती है । वनस्पतिकाय की दृष्टि से हरियाली पर निक्षिप्त वस्तु अनंतर निक्षिप्त तथा हरियाली पर रखे हुए पिठरक आदि में निक्षिप्त मालपूआ आदि परम्पर निक्षिप्त होता है। त्रसकाय की दृष्टि से बैल आदि के पीठ पर रखे हुए मालपूए आदि अनंतर निक्षिप्त तथा कुतुप आदि भाजनों में भरकर बैल की पीठ पर रखे मालपूए परम्पर निक्षिप्त होते हैं। टीकाकार के अनुसार निक्षिप्त के कुल भेदों की संख्या ४३२ होती है।
निक्षिप्त के पूरे प्रसंग को पढ़कर जाना जा सकता है कि जैन आचार्यों ने साधु की भिक्षाचर्या के विषय में कितनी सूक्ष्मता से चिन्तन किया है। अन्य किसी भी धर्म के संन्यासी वर्ग के लिए इतनी सूक्ष्म अहिंसा प्रधान भिक्षाचर्या का उल्लेख नहीं मिलता है।
१. पिनि २५२/१,२ ।
२. पिनि २५० ।
३. पिनि २५१ / २ ।
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४. पिनि २५१ / ३ ।
५. पिनि २५४, २५५ ।
६. मवृ प. १५१ ।
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