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पिंडनियुक्ति इन प्रायश्चित्तों की तप के रूप में प्रस्तुति देते हुए भाष्यकार कहते हैं कि लधुमास का पुरिमार्ध, गुरुमास का एकाशन, चार लघुमास का आयम्बिल तथा चार गुरुमास का उपवास प्रायश्चित्त होता है। पूतिकर्म-पूतिकर्म के दो भेदों में उपकरणपूति का प्रायश्चित्त मासलघु' (पुरिमार्ध) तथा भक्तपानपूति का प्रायश्चित्त मासगुरु (एकाशन) है। मिश्रजात दोष-मिश्रजात दोष के तीन भेदों में प्रथम यावदर्थिक मिश्र आहार लेने पर चार लघुमास (आयम्बिल) तथा पाखंडिमिश्र तथा साधुमिश्रआहार ग्रहण पर चार गुरु (उपवास) प्रायश्चित्त आता है। स्थापना दोष-स्थापना दोष दो प्रकार का होता है-इत्वरिक स्थापित तथा चिर स्थापित । इत्वरिक स्थापित सम्बन्धी दोष लगने पर पणग-पांच दिन-रात (निर्विगय) तथा चिर स्थापित दोष लगने पर मासलघु (पुरिमार्ध) प्रायश्चित्त आता है। प्राभृतिका दोष-सूक्ष्म प्राभृतिका दोष लगने पर लघुपणग (निर्विगय) तथा बादर प्राभृतिका सम्बन्धी दोष लगने पर चार गुरुमास (उपवास) प्रायश्चित्त आता है। प्रादुष्करण दोष--प्रादुष्करण दोष के अन्तर्गत प्रकटकरण अर्थात् अंधकारपूर्ण स्थान से बाहर प्रकाश में लाने पर मासलघु (पुरिमार्ध) और दीप आदि के द्वारा प्रकाश करने पर चार लघु (आयम्बिल) प्रायश्चित्त आता है। क्रीतकृत दोष-यह दोष चार प्रकार का होता है-१. आत्मद्रव्यक्रीत २. आत्मभावक्रीत ३. परद्रव्यक्रीत ४. परभावक्रीत। इनमें आत्मद्रव्यक्रीत, परद्रव्यक्रीत तथा आत्मभावक्रीत दोष में चारलवु (आयम्बिल) तथा परभावक्रीत में मासलघु (पुरिमार्ध) प्रायश्चित्त आता है। प्रामित्य दोष-लौकिक प्रामित्य सम्बन्धी दोष में चारलघु (आयम्बिल) तथा लोकोत्तर प्रामित्य सम्बन्धी दोष में मासलघु (पुरिमार्ध) का प्रायश्चित्त आता है। परिवर्तित दोष-लौकिक परिवर्तित दोष लगने पर चारलघु (आयम्बिल) तथा लोकोत्तर दोष लगने पर मासलघु (पुरिमार्ध) प्रायश्चित्त आता है। अभ्याहृत दोष-स्वग्राम अनाचीर्ण अभ्याहत दोष लगने पर मासलघु (पुरिमार्ध) प्रायश्चित्त आता है। परग्राम अभ्याहृत जलपथ और स्थलपथ दो प्रकार का होता है। इसमें सप्रत्यवाय अर्थात् दोष बहुल मार्ग में आत्म-विराधना और संयम-विराधना संभव है अतः अपायबहुल मार्ग से अभ्याहत में चारगुरु (उपवास)
१. जीभा १२००-१२०२।
५. जीभा १२१९, १२२० । २. जिस प्रायश्चित्त का जो तप रूप निर्वाह है, उसको उसी ६.जीभा १२२५ ।
प्रायश्चित्त के आगे कोष्ठक में दिया जा रहा है। ७. जीभा १२३९, १२४०। ३. जीभा १२०६, १२०७।
८. जीभा १२४२-४४। ४. जीभा १२१७, १२१८।
९. जीभा १२५१।
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