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पिण्डनिर्युक्ति : एक पर्यवेक्षण
तथा दोष रहित मार्ग से आहत में चार लघु (आयम्बिल) प्रायश्चित्त आता है ।"
उद्भिन्न दोष – पिहित उद्भिन्न सम्बन्धी दोष में यदि प्रासुक गोबर या कपड़े के मुखबंध को खोलते समय घी या तैल फैल जाता है तो मासलघु (पुरिमार्ध) प्रायश्चित्त आता है। यदि अप्रासुक पृथ्वीकाय या सचित्त वस्तु से लिप्त पिहित को खोलकर दिया जाए तो उसमें षट्काय- विराधना संभव रहती है अत: इस दोष में चारलघु (आयम्बिल) प्रायश्चित्त आता है। इसी प्रकार कपाटोद्भिन्न सम्बन्धी दोष में भी चारलघु (आयम्बिल) प्रायश्चित्त प्राप्त होता है। निशीथभाष्य के अनुसार अनंतकाय वनस्पति को उद्भिन्न करने पर चार गुरु (उपवास), परित्त मिश्र वनस्पति को उद्भिन्न करने पर मासलघु (पुरिमार्ध) तथा अनंतमिश्र को उन्न करने पर मासगुरु ( एकासन) प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है ।
मालापहृत दोष - उत्कृष्ट माला पहृत दोष लगने पर चार लघु (आयम्बिल) तथा जघन्य मालापहृत दोष में मासलघु (पुरिमार्ध) प्रायश्चित्त आता है ।
आच्छेद्य दोष- आच्छेद्य दोष में प्रभु, स्वामी तथा स्तेनविषयक - इन तीनों प्रकार के दोष लगने पर चारलघु (आयम्बिल) प्रायश्चित्त आता है। "
अनिसृष्ट दोष - अनिसृष्ट (अननुज्ञात) दोष भी तीन प्रकार का होता है - १. साधारण २. चोल्लक ३. जड्डु (हाथी)। इन तीनों प्रकार के अनिसृष्ट दोष में चार लघु (आयम्बिल) प्रायश्चित्त आता है । अध्यवपूरक दोष- यावदर्थिक अध्यवपूरक दोष लगने पर लघुमास (पुरिमार्ध) तथा पाषंडिमिश्र अध्यवतर और साधुमिश्र अध्यवतर में गुरुमास ( एकासन) प्रायश्चित्त आता है ।
उद्गम के १६ दोषों के प्रायश्चित्त कथन के पश्चात् उत्पादना के सोलह दोषों से सम्बन्धित प्रायश्चित्तों का कथन किया जा रहा है
धात्रीपिण्ड - अंकधात्री आदि पांचों प्रकार की धात्री - सम्बन्धी दोष लगने पर चारलघु (आयम्बिल) प्रायश्चित्त आता है । "
दूतीपिण्ड - दौत्यकर्म करके आहार लेने पर चारलघु (आयम्बिल) प्रायश्चित्त आता है ।" निमित्तपिण्ड - निमित्त दोष में अतीत सम्बन्धी निमित्त कहने पर चारलघु (आयम्बिल) तथा वर्तमान और भविष्य विषयक निमित्त कथन करने पर चारगुरु (उपवास) प्रायश्चित्त आता है। १२
१. जीभा १२५४, १२५५ ।
२. जीभा १२५७ ।
३. जीभा १२६४, १२६५ ।
४. जीभा १२६८ ।
५. निचूभा. ४ पृ. १९२; अणंतेसु चउगुरुं, परित्तमीसेसु
मासलहुं, अनंतमीसेसु मासगुरुं ।
६. जीभा १२७२, १२७३ ।
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७. जीभा १२७४ ॥
८. जीभा १२७५ ।
९. जीभा १२८५ ।
१०. जीभा १३२४ ।
११. जीभा १३४० ।
१२. जीभा १३४८, १३४९ ।
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