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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
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उपद्रव कर सकते हैं, बैल सींग मार सकता है तथा आरक्षकगण उसे चोर समझकर उत्पीड़ित कर सकते हैं। निशीथ भाष्य एवं उसकी चूर्णि में भी रात्रिभोजन से होने वाले दोषों का विस्तार से वर्णन हुआ है।
संयम-विराधना के अन्तर्गत रात्रिगमन में षट्काय की विराधना संभव है क्योंकि अंधकार में दिखाई न देने से हरियाली एवं बीज आदि की हिंसा भी संभव है। भाष्यकार ने रात्रिभोजन से होने वाली संयम-विराधना का विस्तार से वर्णन किया है।'
रात्रि-भोजन करने वाले को चार अनुद्घात मास अथवा चार गुरुमास (उपवास) प्रायश्चित्त की प्राप्ति होती है। गृहान्तरनिषद्या
भिक्षा के समय मुनि गृहस्थ के घर नहीं बैठ सकता। आगमों में गृहस्थ के घर बैठने वाले मुनि को पापश्रमण तथा प्रायश्चित्त का भागी माना है। दशवैकालिक सूत्र में बिना कारण गृहस्थ के घर बैठने को अनाचार माना गया है।
भिक्षा के समय मुनि यदि गृहस्थ के घर बैठता है तो अतिसम्पर्क होने के कारण ब्रह्मचर्य खंडित होने की संभावना रहती है। घर में बैठे साधु भिक्षा की प्रतीक्षा कर रहे हैं, यह देखकर गृहस्वामिनी शीघ्रता से अवधकाल में प्राणियों का वध कर सकती है, इससे अन्य भिक्षाचरों को बाधा पहुंचती है तथा काम में बाधा पड़ने से गृहस्थ को गुस्सा भी आ सकता है। सन्निधि और संचय
सन्निधि या संग्रह करना साधु के लिए अनाचार है। साधु प्राप्त भिक्षा की न सन्निधि कर सकता है और न ही संचय। सूत्रों में स्पष्ट उल्लेख है कि साधु अणुमात्र या लेपमात्र भी संचय न करे।१ प्राप्त खाद्य-पदार्थों का संचय करने वाला गृहस्थ की भांति आचरण करता है ।२ महावीर ने औषध का संचय करने की भी अनुमति नहीं दी।१३
यद्यपि यह नियम सीधा भिक्षाचर्या के साथ नहीं जुड़ता लेकिन उपकरणों के साथ आहार-पानी का संग्रह या संचय भी हो जाता है अत: इसका उल्लेख किया गया है।
१. बृभा २८४१, २८४२।
८. दश६/५६॥ २. देखें निभा ४१३-४२३, चू. पृ. १४०-४३।
९. दश ६/५७१ ३. देखें बृभा २८४३-४८, टी पृ. ८०३-८०५।
१०. दश ३/३। ४. निभा ४१२, चू पृ. १४०; राईभत्ते चउव्विहे, चउरो मासा ११. (क) उ ६/१५;सन्निहिंच न कुव्वेज्जा, लेवमायाए संजए। भवंतणुग्घाया।
(ख) दश ८/२४; सन्निहिं च न कुव्वेज्जा, अणुमायं पिसंजए। ५. दश ५/२/८।
१२. दश ६/१८॥ ६. उ १७/१९; गिहिनिसेज्जं च वाहेइ, पावसमणि त्ति वुच्चई। १३. प्र१०/९ । ७. नि १२/१३।
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