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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
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(१.) ।।।। (२.) ।।।s (३.) । । । (४.) ।।ss (५.) । s ।। (६.) ।s I s (७.) । ss। (८.) । sss (९.) ।।। (१०.) ।। (११.) s। 5 । (१२.) SIss (१३.) ss || (१४.) s SIS (१५.) ss s। (१६.) ssss
इनमें सीधी रेखा वाले अंश शुद्ध तथा s आकार वाले अंश अशुद्ध हैं। इन सोलह भंगों में प्रथम भंग अनुज्ञात है। शेष १५भंग अकल्प्य हैं। चार पदों के आधार पर भंगों का चार्ट इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है
पार्वावलिप्त अनत्युष्ण अपरिशाटी अघट्टितकर्ण ILIS पार्वावलिप्त अनत्युष्ण अपरिशाटी घट्टितकर्ण ।। ।। पार्वावलिप्त अनत्युष्ण परिशाटी अघट्टितकर्ण | Iss पार्वावलिप्त अनत्युष्ण परिशाटी घट्टितकर्ण ISII पाश्र्वावलिप्त अत्युष्ण अपरिशाटी अघट्टितकर्ण Is Is पार्वावलिप्त अत्युष्ण अपरिशाटी घट्टितकर्ण Iss। पार्वावलिप्त अत्युष्ण परिशाटी अघट्टितकर्ण ISSS पार्वावलिप्त अत्युष्ण परिशाटी घट्टितकर्ण s।।। अनवलिप्त
अनत्युष्ण अपरिशाटी
अघट्टितकर्ण SIIs अनवलिप्त अनत्युष्ण अपरिशाटी घट्टितकर्ण SISI अनवलिप्त अनत्युष्ण परिशाटी अघट्टितकर्ण SISS अनवलिप्त अनत्युष्ण परिशाटी घट्टितकर्ण ss|| अनवलिप्त अत्युष्ण अपरिशाटी अघट्टितकर्ण SSIS 37796 अत्युष्ण अपरिशाटी घट्टितकर्ण sss। अनवलिप्त
अत्युष्ण परिशाटी अघट्टितकर्ण ssss अनवलिप्त अत्युष्ण परिशाटी घट्टितकर्ण
आधुनिक गणित में इसका सूत्र इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है-४=१६ । ४. पिहित दोष
सचित्त फल या पृथ्वी आदि से ढ़के हुए अथवा अचित्त गुरु पदार्थ से पिहित खाद्य पदार्थ को ग्रहण करना पिहित दोष है। दशवैकालिक के पांचवें अध्ययन में उल्लेख मिलता है कि जलकुंभ, चक्की, पीठ, शिलापुत्र (लोढ़ा),मिट्टी का लेप तथा लाख आदि से पिहित पात्र को साधु के लिए खोलकर देती हुई स्त्री को मुनि भिक्षा का प्रतिषेध करे। इसके तीन भेद हैं-१. सचित्त २. अचित्त ३. मिश्र। इन तीनों की तीन चतुर्भंगियां होती हैं
१. मूला ४६६;
सच्चित्तेण व पिहिदं, अधवा अचित्तगुरुगपिहिदं च। तं छंडिय जं देयं, पिहिदं तं होदि बोधव्वो॥
२. दश ५/१/४५, ४६। ३. पिनि २५६, मवृ प. १५४।
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