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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
११३ पर तिल आदि पीसती हुई, २२. रुई धुनती हुई, २३. कपास लोठती हुई (बीनती हुई), २४. सूत कातती हुई, २५. चरखा चलाती हुई, २६. सचित्त जल, वनस्पति आदि से युक्त हाथ वाली, २७. सचित्त लवण आदि षट्काय को नीचे रखती हुई, २८. छह काय को पैरों से कुचलती हुई, २९. छह काय का शरीर से स्पर्श करती हुई, ३०. छह जीवनिकाय की हिंसा करती हुई, ३१. दही आदि से लिप्त हाथ वाली, ३२. दही आदि से लिप्त पात्र वाली, ३३. बड़े पात्र से निकाल कर देती हुई, ३४. दूसरों की वस्तु देती हुई, ३५. चोरी की वस्तु देती हुई, ३६. अग्र कवल निकालती हुई, ३७. गिरने आदि की सम्भावना हो ऐसी स्त्री, ३८. अन्य साधु के लिए स्थापित आहार देती हुई, ३९. जान-बूझकर अशुद्ध देती हुई ४०. अनजान में अशुद्ध देती
___ दशवैकालिक के पांचवें पिण्डैषणा अध्ययन में प्रतिषिद्ध दायकों का विकीर्ण रूप से उल्लेख मिलता है।
ओघनियुक्ति में दायक से सम्बन्धित २० दोषों का उल्लेख मिलता है-१. अव्यक्त (बाल), २. अप्रभु (जिसका घर पर स्वामित्व न हो), ३. स्थविर, ४. नपुंसक, ५. मत्त, ६. क्षिप्त चित्त (धन आदि की चोरी होने पर जिसका चित्त क्षिप्त हो जाए), ७. दीप्तचित्त (शत्रु के द्वारा अनेक बार पराजित होने पर चित्त-विप्लुति होना), ८. यक्षाविष्ट, ९. कटे हाथ वाला, १०. छिन्न पैर वाला, ११. अंधा, १२. श्रृंखलाबद्ध, १३. कोढ़ी, १४. गर्भवती स्त्री, १५. बालवत्सा स्त्री, १६. अनाज का कंडन करती हुई, १७. उसे पीसती हुई, १८. अनाज भूनती हुई, १९. सूत कातती हुई, २०. रुई पीजती हुई।
मूलाचार में निम्न व्यक्तियों को भिक्षा देने के अयोग्य माना है -१. धाय २. मदिरा से उन्मत्त ३. रोगी ४. मृतक को श्मशान में पहुंचाकर आने वाला५ ५. नपुंसक ६. पिशाच (वातरोग से प्रभावित) ७. नग्न ८. मल विसर्जित करके आया हुआ ९. मूर्छा के कारण पतित १०. वमन करके तत्काल आया हुआ ११. रुधिर युक्त १२. वेश्या दासी १३. आर्यिका-श्रमणी (रक्तपटिका आर्यिका आदि न हो) १४. शरीर का अभ्यंगन की हुई १५. अति बाला (छोटी बालिका, यहां उपचार से छोटा बालक भी गृहीत हो जाएगा।) १६. अतिवृद्धा १७. खाना खाती हुई १८. गर्भिणी (पांच मास की गर्भिणी)६ १९. अंधी स्त्री २०. अंतरिता-भीत आदि के पीछे या उसके सहारे से बैठी स्त्री २१. नीचे बैठी हुई २२. ऊंचे स्थान पर बैठी हुई २३. मुंह से अग्नि फूंकने वाली २४. काठ डालकर अग्नि जलाने वाली २५. सारण-चूल्हे में लकड़ी आदि को आगे-पीछे सरकाती हुई २६. भस्म आदि से आग को ढकने वाली २७. पानी आदि से अग्नि १. पिनि २६५-७०।
५. मूलाटी पृ. ३६४ ; मृतकसूतकेन यो जुष्टः सोऽपि मृतक २. दश ५/१/२९, ४०, ४२,४३।
इत्युच्यते-मृतक सूतक से युक्त होने के कारण वह भी ३. ओनि ४६७, ४६८।
मृतक कहलाता है। ४. मूला ४६८-७१।
६. मूलाटी पृ. ३६४ ; गर्भिणी गुरुभारा पंचमासिका।
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