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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
उपकरणपूति
पकते हुए अन्न के लिए चूल्हा तथा परोसे जाते हुए आहार के लिए चम्मच आदि उपकारी होने के कारण उपकरण कहे जाते हैं। आधाकर्मिक कर्दम से मिश्रित चूल्हा तथा आधाकर्म आहार से स्पृष्ट स्थाली और चम्मच उपकरण पूति हैं।' आहारपूति
__यदि आधाकर्मिक चम्मच को स्थाली से बाहर निकाल दिया जाए तो स्थाली का आहार कल्प्य होता है लेकिन आधाकर्मिक चम्मच से यदि शुद्ध आहार भी दिया जाए तो वह आहारपूति है। इसी प्रकार यदि दर्वी आधाकर्मिकी न होने पर भी उससे यदि आधाकर्म आहार को हिलाकर फिर शुद्ध आहार दिया जाए तो वह शुद्ध आहार भी आहारपूति कहलाता है। भक्तपानपूति
शुद्ध छाछ आदि में आधाकर्मिक शाक, लवण, हींग, राई तथा जीरा आदि का मिश्रण करना अथवा बघार देना भक्तपानपूति है। जिस भाजन में पहले आधाकर्म आहार पकाया गया, यदि उसे कल्पत्रय-तीन बार अच्छी तरह से साफ किए बिना आहार पकाया अथवा डाला जाए तो वह भक्तपानपूति कहलाता है। कल्पत्रय का एक अर्थ यह भी संभव है कि तीन बार उस पात्र में आहार पकाकर निकालने पर चौथी बार पकाया गया आहार शुद्ध होता है। धूम रहित अंगारों पर बेसन, हींग तथा जीरा आदि डालने पर जो धूम निकलता है, उस धूम से व्याप्त स्थाली तथा तक्र आदि भी पूति दोष से युक्त हैं, यह उपकरणपूति के अन्तर्गत आता है। सूक्ष्मपूति
ईंधन, अग्निकण, धूम और वाष्प-इन चारों से सूक्ष्मपूति होती है। धूम, गंध आदि के अवयव सब जगह व्याप्त रहते हैं अत: उनका परिहार संभव नहीं है। सूक्ष्मपूति के संदर्भ में ग्रंथकार ने एक प्रश्न उपस्थित किया है कि कभी-कभी कल्पत्रय से पात्र को धोने पर भी उसकी गंध नहीं जाती अतः सूक्ष्म पूति से बचाव कैसे संभव है? इसका समाधान करते हुए नियुक्तिकार कहते हैं कि जैसे दूर से आती अशुचि गंध से स्पृष्ट होने पर भी उस द्रव्य को दूषित या त्याज्य नहीं माना जाता, वैसे ही आधाकर्म से सम्बन्धित गंध के पुद्गलों के स्पर्श से चारित्र विकृत नहीं होता। आचार्य मलयगिरि इसे स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि गंध सूक्ष्मपूति है। यह केवल प्रज्ञापनीय है, इसका परिहार संभव नहीं हो सकता क्योंकि गंध के परमाणु समग्र लोक में व्याप्त हैं।
१. पिनि ११३, ११३/२। २. पिनि ११३/३। ३. पिनि ११३/४।
४. निभा ८०९, चू पृ. ६५। ५. पिनि ११४, मवृ प. ८५। ६. पिनि ११७/२। ७. मवृ प. ८६, ८७।
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