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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण निर्बन्ध गूंज रही है। इतने दिन तुम्हारे दान के बारे में सुनते थे लेकिन आज प्रत्यक्ष तुम्हारी इस विशेषता को देखा है। तुम्हारी दान की भावना अपूर्व है आदि-आदि। इस प्रकार भिक्षा लेने से पहले संस्तव करके भिक्षा लेना पूर्ववचन संस्तव है। दिगम्बर परम्परा में पूर्वसंस्तुति और पश्चात्संस्तुति शब्द का प्रयोग मिलता है। उनके अनुसार दाता को यह कहना कि तुम यशोधर के समान दानपति हो तथा भूलने पर यह याद दिलाना कि तुम तो बड़े दानी थे, अब दान देना कैसे भूल गए, यह पूर्वसंस्तुति दोष है। • पश्चाद्वचन संस्तव
भिक्षा लेने के बाद दाता की प्रशंसा करते हुए यह कहना कि तुमसे मिलकर आज मेरे चक्षु पवित्र हो गए। पहले मुझे तुम्हारे गुणों के बारे में शंका थी लेकिन तुमको देखकर अनुभव हुआ कि तुम्हारे गुण यथार्थ रूप से प्रसिद्ध हैं, यह पश्चात्वचन संस्तव है।' • पूर्वसम्बन्धी संस्तव
भिक्षा लेते समय किसी दानदाता या दानदात्री के साथ पिता, माता या बहिन का सम्बन्ध स्थापित करना, पूर्वसम्बन्धी संस्तव है। भिक्षार्थ प्रविष्ट मुनि अपनी वय तथा गृहिणी की वय देखकर तदनुरूप सम्बन्ध स्थापित करते हुए कहता है कि मेरी माता, बहिन, बेटी या पौत्री ऐसी ही थी, इस प्रकार विवाह से पूर्व होने वाले सम्बन्ध स्थापित करना पूर्वसम्बन्धी संस्तव है। • पश्चात्सम्बन्धी संस्तव
भिक्षा लेते समय दाता या दात्री के साथ वय के अनुसार श्वसुर, सास या पत्नी के रूप में सम्बन्ध स्थापित करना पश्चात्सम्बन्धी संस्तव है।६ पश्चात्संस्तव के रूप में किसी दानदात्री को देखकर मुनि कहता है कि मेरी सास या पत्नी तुम्हारे जैसी थी। ।
जीतकल्पभाष्य में इन चारों भेदों में पुरुष की अपेक्षा स्त्री से सम्बन्ध स्थापित करना या संस्तव करना अधिक दोषप्रद है। पूर्व और पश्चात् सम्बन्धी संस्तव से होने वाले दोषों को निम्न बिन्दुओं में प्रस्तुत किया जा सकता है
• यदि गृहिणी प्रान्त स्वभाव की है तो वह यह सोच सकती है कि यह मुनि मायावी और चापलूस है। यह माता, भार्या आदि कहकर हमारा तिरस्कार कर रहा है। वह क्रुद्ध होकर मुनि को घर से बाहर भी निकाल सकती है।
• यदि गृहिणी का पति मुनि की यह बात सुन लेता है तो वह मुनि का सद्यः घात कर सकता
१.पिनि २२५, २२५/१। २. मूला ४५५। ३. पिनि २२६, २२६/१, मूला ४५६। ४. पिंप्र ७२ ; जणणि-जणगाइ पुव्वं ।
५. पिनि २२२/१। ६. पिंप्र ७२ ; पच्छा सासु-ससुराइ जं च जई। ७. पिनि २२३। ८. जीभा १४२२-१४२५ ।
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