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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
७९ अभिहत दोष भी कहा जाता है। अभिहत दोष दो प्रकार का होता है-आचीर्ण और अनाचीर्ण । छेदसूत्रों में उल्लेख मिलता है कि यदि कोई गाथापति साधु के लिए तीन घर के आगे से आहार लाकर दे तो उसे ग्रहण करने वाला भिक्षु प्रायश्चित्त का भागी होता है। दशवैकालिक सूत्र में अभिहत आहार में वध की अनुमोदना को स्वीकार किया है। आगमों में अनेक स्थलों पर अभिहत दोष युक्त भिक्षा का निषेध किया गया है।
__ अनाचीर्ण अभ्याहत के दो भेद हैं-निशीथ अनाचीर्ण अभ्याहृत तथा नोनिशीथ अनाचीर्ण अभ्याहृत। निशीथ का अर्थ है-जहां दायक अपने आशय को प्रकट न करे तथा नोनिशीथ का तात्पर्य है, जहां दाता अपने आने का प्रयोजन स्पष्ट कर दे। प्रवचनसारोद्धार' की टीका में अभ्याहृत के भेद-प्रभेद इस प्रकार
आचीर्ण
अनाचीर्ण
देश
देशदेश
देशदेश
निशीथ
निशीथ
नोनिशीथ
नोनिशीथ
उत्कृष्ट मध्यम जघन्य
उत्कृष्ट मध्यम जघन्य
स्वग्राम परग्राम स्वग्राम
परग्राम
गृहान्तर
नोगृहान्तर
स्वदेश
परदेश
वाटक साही निवेशन गृह
(गली)
जलपथ स्थलपथ
जलपथ स्थलपथ
नांव
तरणकाष्ठ तुम्बा जंघा
जंघा वाहन
नाव
उडुप
जघा वाहन
१. नि ३/१५। २. दश ६/४८। ३. स्था ९/६२, दश३। ४. जीभा १२५०, छण्ण णिसीहं भण्णति, पगडं पुण होति
णोणिसीहं ति।
५. प्रसा १४०,१४१। । ६. जीभा १२५३ ; जीतकल्पभाष्य में जलपथ और स्थलपथ
को पुनः दो भागों में विभक्त किया है-दोषयुक्त मार्ग तथा निरापद मार्ग।
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