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१४. आच्छेद्य दोष
किसी वस्तु को उसके स्वामी की बिना इच्छा के बलात् छीनकर साधु को देना आच्छेद्य दोष है।' मूलाचार में इसकी व्याख्या कुछ भिन्न मिलती है। उसके अनुसार मुनि के भिक्षा श्रम को देखकर राजा और चोर आदि के भय से साधु को आहार देना आच्छेद्य दोष है। इसके टीकाकार ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा है कि राजा और चोर द्वारा कौटुम्बिक के मन यह भय उत्पन्न किया जाए कि यदि मुनि को आहार नहीं दोगे तो राजा द्रव्य का अपहरण कर लेंगे या राज्य से बाहर निकाल देंगे, इस प्रकार भय उत्पन्न करके दान दिलवाना आच्छेद्य दोष है । आच्छेद्य दोष तीन प्रकार का होता है
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प्रभुविषयक – गृहस्वामी अपने पुत्र, पुत्री, नौकर, ग्वाला आदि की वस्तु को बलात् छीनकर साधु को देता है, वह प्रभुविषयक आच्छेद्य दोष है ।
• स्वामिविषयक –— ग्रामनायक किसी कौटुम्बिक आदि की वस्तु बलात् छीनकर साधु को देता है, वह स्वामिविषयक आच्छेद्य दोष है । ३
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स्तेनविषयक - चोर किसी सार्थ के व्यक्ति की वस्तु को छीनकर यदि साधु को देता है तो वह स्तेनविषयक आच्छेद्य दोष है। ये तीनों प्रकार के आच्छेद्य आहार साधु के लिए अकल्प्य हैं।
आच्छेद्य आहार ग्रहण करने से अप्रीति और कलह की संभावना रहती है, जैसा कि निर्युक्तिकार द्वारा निर्दिष्ट गोपालक की कथा में गोपालक को मुनि के प्रति प्रद्वेष पैदा हो गया। जिससे छीनकर आह आदि दिया जाता है, उसके अंतराय कर्म बंधने में भी मुनि निमित्तभूत बनते हैं तथा मुनि को अदत्तादान दोष भी लगता है । प्रद्वेष के कारण एक या अनेक साधुओं के लिए भक्तपान का विच्छेद होता है। इसके अतिरिक्त उपाश्रय से निष्काशन तथा अन्य अनेक कष्ट भी प्राप्त हो सकते हैं। इसका अपवाद बताते हुए ग्रंथकार कहते हैं कि यदि वे दरिद्र पुरुष या स्वामी भक्तपान देने की अनुमति दें तो मुनि वह आच्छेद्य आहार ले सकता है।
पिंड
स्तेन विषयक आच्छेद्य का प्रसंग प्रायः सार्थ के साथ जाने वाले मुनियों के समक्ष उपस्थित होता है । सामान्यतः साधु को स्तेनाच्छेद्य नहीं ग्रहण करना चाहिए लेकिन चोरों के द्वारा बलात् देने पर सार्थक यदि यह कहते हैं कि हमारे लिए मुनि को दान देने का यह सौभाग्य का अवसर उपस्थित हुआ है तो मुनि
१. (क) मवृ प. ३५ ; आच्छिद्यते - अनिच्छतोऽपि भृतकपुत्रादेः सकाशात् साधुदानाय परिगृह्यते यत् तदाच्छेद्यम्।
(ख) पिंप्र ५०; अच्छिदिय अन्नेसिं, बलावि जं देंति
सामिपहुतेणा तं अच्छेज्जं ।
२. मूला ४४३, टी पृ. ३४६ ।
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३. पिनि १७४ |
४. पिनि १७७ ।
५. पिनि १७३ / २, ३ ।
६. पिनि १७६, १७७ । ७. पिनि १७७ ।
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