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पिंडनियुक्ति निमंत्रित आहार), क्रीत, औद्देशिक और आहृत आहार ग्रहण करते हैं, वे प्राणि-वध का अनुमोदन करते हैं। प्रश्नव्याकरण सूत्र में औद्देशिक आहार को हिंसा और पाप बहुल बताया है। ग्रंथकार ने औद्देशिक के ओघ और विभाग दो भेद किए हैं। ओघ औद्देशिक
यहां कुछ नहीं दूंगा तो अगले जन्म में भी कुछ नहीं मिलेगा, यह सोचकर गृहस्थ द्वारा पकाए जाने वाले आहार में अन्य दर्शनी साधुओं के लिए विभाग रहित प्रक्षेप ओघ औद्देशिक कहलाता है। ओघ औद्देशिक जानने की विधि
सामान्यतः साधु गृहस्थ के शब्द एवं उसकी चेष्टा से जान लेता है कि यह ओघ औद्देशिक है। नियुक्तिकार के अनुसार ओघ औद्देशिक जानने के कुछ बिन्दु इस प्रकार हैं
• पत्नी अपने पति से यह कहे कि प्रतिदिन दी जाने वाली पांचों भिक्षाचरों को भिक्षाएं दी जा चुकी हैं। • यदि गृहस्वामिनी भिक्षा की गणना हेतु रेखाएं खींचे अथवा भिक्षा देती हुई उसकी गणना करे। • गृहस्वामिनी अपने पति या भिक्षा-दाता को कहे कि उद्दिष्ट दत्ती से भिक्षा दो, यहां से नहीं। • साधु के भिक्षार्थ प्रवेश करने पर वह कहे कि इतनी भिक्षा पृथक् कर दो। • गृहस्वामिनी के गमन, बर्तनों को खोलना, रखना तथा उसके शब्दों में दत्तावधान मुनि औद्देशिक भिक्षा
की एषणा और अनेषणा को सम्यक् प्रकार से जान लेता है। इस प्रसंग में नियुक्तिकार ने गोवत्स का
उदाहरण दिया है। विभाग औद्देशिक
__ श्रमण, ब्राह्मण आदि का विभाग करके जो भोजन पकाया जाता है, वह विभाग औद्देशिक है। पिण्डनियुक्ति के अनुसार विवाह आदि उत्सव समाप्त होने के पश्चात् उसमें शेष बचे हुए पक्वान्न में कुछ हिस्सा दान हेतु अलग रखना विभाग औद्देशिक है। इसके तीन प्रकार हैं-उद्दिष्ट, कृत और कर्म। उद्दिष्ट-गृहस्थ के निमित्त निष्पन्न आहार में भिक्षाचरों के लिए अलग रखना उद्दिष्ट औद्देशिक कहलाता
कृत-बचे हुए शाल्योदन की भिक्षा देने के लिए दही और भात मिलाकर करम्ब रूप में निष्पन्न करना कृत औद्देशिक है।'
१. दश ६/४८ २. पिनि ९४। ३. पिनि ९४/१, ९५। ४. पिनि ९५/१-९६/३, कथा के विस्तार हेतु देखें परि. ३,
कथा सं. १६।
५. पिनि ९६/४, मवृ प. ७९ । ६. मवृ प. ७७; स्वार्थमेव निष्पन्नमशनादिकं भिक्षाचराणां
दानाय यत् पृथक्कल्पितं तदुद्दिष्टम्। ७. मवृ प.७७; यत् पुनरुद्धरितं सत् शाल्योदनादिकं भिक्षा
दानाय करम्बादिरूपतया कृतं तत्कृतमित्युच्यते।
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