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पिण्डनियुक्ति : एक पर्यवेक्षण
ये तीनों मत भी ऐकान्तिक रूप से एक रूप तथा सत्य नहीं हो सकते क्योंकि रूक्ष बर्तन में लगे हुए बिन्दु जल्दी सूखते हैं तथा स्निग्ध पात्र में लगे बिन्दुओं को सूखने में समय लगता है। जल के बुबुदे भी तेज पवन से जल्दी शान्त हो जाते हैं, मंद हवा में कुछ समय तक अवस्थित भी रह सकते हैं। तीसरे आदेश में भी एकरूपता नहीं है। जो चावल बहुत देर से पानी में भीगे हुए हैं, पुराने हैं, नीचे ईंधन सामग्री पर्याप्त मात्रा में है तथा मधुर जल का योग है तो वे जल्दी पक जाते हैं। इसके विपरीत स्थिति में चावल को पकने में अधिक समय लगता है। इसका स्पष्टीकरण करते हुए ग्रंथकार कहते हैं कि जब तक तण्डुलोदक अति स्वच्छ न हो जाए, तब तक उसे मिश्र मानना चाहिए। भाष्यकार के अनुसार अपरिणत चाउलोदक में यदि दूसरा सचित्त जल डाल दिया जाए तो वे दोनों उदक चिरकाल से परिणत होते हैं।
टीकाकार मलयगिरि के अनुसार दही और तैल के घट में यदि सचित्त जल डाल दिया जाए और उसके ऊपर दही या तैल की मोटी तरी (परत) आ जाए तो वह जल एक पौरुषी में अचित्त होता है,मध्यम तरी से दो पौरुषी में तथा पतली तरी आने से तीन पौरुषी में अचित्त होता है।'
घर की छत पर मिट्टी के कोल्हू पर गिरा वर्षा का जल छत पर लगे धूम और आतप के सम्पर्क के कारण अचित्त हो जाता है। वर्षा रुकने के अन्तर्मुहूर्त बाद वह पानी अचित्त हो जाने से ग्रहण किया जा सकता है। वर्षा गिरने पर वह जल मिश्र होता है अत: वर्षा रुकने के बाद ग्रहण करना चाहिए। चूर्णिकार के अनुसार ग्रीष्मऋतु में एक दिन-रात के बाद गर्म पानी फिर सचित्त हो जाता है तथा हेमन्त और वर्षाऋतु में सवेरे किया हुआ गर्म जल शाम तक सचित्त हो जाता है। प्रवचनसारोद्धार के अनुसार उष्णकाल में पांच प्रहर के पश्चात्, शीतकाल में चार प्रहर तथा वर्षाकाल में तीन प्रहर के पश्चात् प्रासुक जल भी पुनः सचित्त बन जाता है। टीकाकार के अनुसार प्रासुक जल भी तीन प्रहर के बाद सचित्त हो जाता है। राख डालने पर वह पुनः सचित्त नहीं होता, उससे मलिन जल भी स्वच्छ हो जाता है।
भाष्यकार के अनुसार जिस द्रव्य में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श उत्कट होते हैं, उस द्रव्य से मिश्रित होने पर उदक अधिक समय तक सचित्त नहीं रहता। यदि अशुभ वर्ण, गंध आदि उत्कट हैं तो वह उदक क्षिप्र गति से अचित्त होता है। यदि वर्ण, गंध आदि शुभ हैं तो चिरकाल में परिणत होता है। स्पर्श के आधार पर भी सचित्त से अचित्त होने के काल में अंतर आता है। कटुकरस होने के कारण चंदन तंडुलोदक का शस्त्र है फिर भी चंदन का स्पर्श शीतल होने से तंडुलोदक चिरकाल से अचित्त या परिणत होता है। इसी प्रकार दही आदि से संस्पृष्ट जल में अम्लरसता जल का शस्त्र है लेकिन उसका स्पर्श शीतल होने के
१. पिनि १७/२, मवृ प. १०, ११। २. बृभा ५९१७। ३. मवृ प.११। ४. दशअच प्र. ६१:.....गिम्हे अहोरत्तेणं सच्चित्तीभवति,
हेमंत-वासास पुव्वण्हे कतं अवरण्हे। ५. प्रसागा ८८२। ६. पिनि २२/४, मवृ प. १५, ओनि ३५५, वृ.प. १३२। ७. बृभा ५९१४, टी पृ. १५५९।
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