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पिण्डनिर्युक्ति : एक पर्यवेक्षण
टीकाकार ने आदि शब्द से तालवृन्त से होने वाली वायु को अचित्त माना है लेकिन दशवैकालिक सूत्र में साधु को तालवृन्त आदि से हवा करने का निषेध है। इससे स्पष्ट है कि सचित्त होने के कारण ही निषेध किया होगा । निर्युक्तिकार ने वायुकाय के अन्तर्गत मिश्र वायुकाय एवं उसके सचित्त- अचित्त होने का निर्धारण भी विस्तार से किया है। चर्ममय दृति में यदि अचित्त वायु भरकर उसके मुख को डोरी से दृढ़ता से बांध कर यदि नदी के जल में छोड़ दिया जाए तो सौ हाथ तक दृतिस्थ वायु अचित्त रहती है । द्वितीय हस्तशत में मिश्र तथा तृतीय हस्तशत में प्रवेश करते ही सचित्त हो जाती है। उसके बाद वह सचित्त ही रहती है । यह क्षेत्र की दृष्टि से जितने समय तक मिश्र अथवा सचित्त रहती है, उसका वर्णन है ।"
काल की दृष्टि से भाष्यकार इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं कि एकान्त स्निग्ध काल में दृतिस्थ वायु एक प्रहर तक अचित्त रहती है। दूसरी प्रहर के प्रारंभ में मिश्र तथा तीसरी प्रहर के प्रारंभ में ही सचित्त हो जाती है। मध्यम स्निग्ध काल में दो प्रहर तक अचित्त, तीसरी प्रहर में मिश्र तथा चौथी प्रहर में सचित्त हो जाती है। जघन्य स्निग्ध काल में दृतिस्थ वायु तीन प्रहर तक अचित्त, चौथी प्रहर में मिश्र तथा पांचवीं प्रहर में सचित्त हो जाती है। रूक्ष काल में भी ऐसा ही जानना चाहिए। वहां प्रहर के स्थान पर दिनों की वृद्धि करनी चाहिए । जघन्य रूक्ष काल में वस्तिगत वायु एक दिन तक अचित्त, दूसरे दिन मिश्र तथा तीसरे दिन सचित्त होती है। मध्यम रूक्ष काल में दो दिन तक अचित्त, तीसरे दिन मिश्र तथा चौथे दिन सचित्त होती है । उत्कृष्ट रूक्ष काल में तीन दिन तक अचित्त, चौथे दिन मिश्र तथा पांचवें दिन सचित्त होती है।
वनस्पतिकाय
सारी अनंतकाय वनस्पति निश्चय नय से सचित्त होती है। प्रत्येक वनस्पति व्यवहार नय से सचित्त होती है । म्लान एवं अर्द्ध शुष्क वनस्पति मिश्र होती है। चावल का आटा मिश्र होता है। टीकाकार के अनुसार तत्काल दला गेहूं का दलिया मिश्र होता है। एक बार भुनी हुई शमी - फली भी सचित्त मिश्र रहती है । पत्र, पुष्प, कोमल फल, व्रीहि, हरियाली के वृंत आदि वनस्पति सूखने पर वह अचित्त हो जाती है । उत्पल और पद्म आतप में रखने पर एक प्रहर से पहले अचित्त हो जाते हैं। उष्णयोनिक वनस्पति वर्षा से म्लान हो जाती है। मगदंतिका एवं जूही के फूल उष्णयोनिक होने के कारण आतप में रखने पर भी चिरकाल तक सचित्त रहते हैं। मगदंतिका के पुष्प पानी में डालने पर एक प्रहर से पूर्व अचित्त हो जाते हैं। उत्पल और पद्म उदकयोनिक होने के कारण उदक में चिरकाल तक सचित्त रह सकते हैं ।" बृहत्कल्पभाष्य
१. दश ८/९ ।
२. पिनि २७/२, मवृ प. १८ ।
३. पिभा, १२ - १४, मवृ प. १८, ओनिटी १३३, १३४ ।
४. पिनि ३०, मवृ प. १९ ।
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५. दश ५ / २ / २० ।
६. बृभा ९७८ ।
७. दशजिचू पृ. २६२ ; उण्हजोणिओ वा वणप्फइ कुहेज्जा । ८. बृभा ९७८, ९७९ ।
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