Book Title: Anuyogdwar Sutram Part 02
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनुयोगद्वारसूत्रे पुरुषो, पुरुषश्च पुरुषश्च पुरुषश्च-पुरुषा इति। अत्रैकशेषो बोध्यः। विरूपाणामपि समानार्थानामेकशेषो भवति । यथा-चक्रदण्डश्च कुटिलदण्डश्चेति-चक्रदण्डौ कुटिलदण्डौवेति । इत्थमे कशेषो बोध्यः। अत्र मूत्रानुसारेणोच्यते । यथा-एकव्यक्ति विवक्षायामेशः पुरुषः, तथा बहुव्यक्तिविवक्षायां बहवः पुरुणा इति भवति । अत्रेक तहा एग्गो करिसावणो, जहा एगो साली तहा बहवे साली जहा बहवे साली तहा एग्गो साली-से तं एगसेसे समासे-से तं समासिए ) जैसे'एकः पुरुषः' ऐसा होता है, उसी प्रकार से 'बहवः पुरुषाः' ऐसा भी होता है । तात्पर्य कहने का यह है समान रूपवाले दो पदों का अथवासमान रूप वाले बहुत पदों का समास होने पर "सरूपाणामेकशेषएकविभक्तो" इस सूत्र के अनुसार एक ही शेष रहता है, और अन्य पदों का लोप हो जाता है । जो वह एकशेष पद रहता है, वह द्विवचन में द्वित्व का और बहुवचन में बहुत्व का वाचक होता है।
और इसी से उसमें द्विवचनान्तता अथवा बहुवचनोन्तता होती है। जैसे-पुरुषश्च पुरुषश्च पुरुषो, पुरुषश्च, पुरुषश्च, पुरुषश्च पुरुषाः। यहां पर एकशेष समास जानना चाहिये । समानार्थक विरूपपदों में भी एकशेष समास होता है। जैसे वक्रदण्डश्च कुटिल दण्डश्चेति वक्रदण्डौ अथवा कुटिलदण्डौ । इस प्रकार यहां पर एकशेष समास जानना चाहिये । जब एक व्यक्ति की विवक्षा होती है, तब ‘एकः पुरुषः' ऐसा जहा एगो साली तहा बहवे साली जहा बहवे सालो तहा एग्गो सालो से त' एगसेसे समासे-से त समाखिए) म 'एकः पुरुषः' थाय छे तमा 'बहवः पुरुषाः' मेम पाय थय छे. तात्पर्य मा प्रभारी छ, समान ३५१ मे पह। अथवा समान ३५वा घi पहोना सभासथी " मरूपा. णामकरोष एकविभक्तौ " २५ सूत्र भु४५ मे १ शेष २२ छ भने भीon પનો લેપ થઈ જાય છે. જે તે એકશેષ પદ રહે છે, તે દ્વિવચનમાં હિન્દુ અને બહુવચનમાં બહત્વને વાચક હોય છે. અને એથી જ એમાં દ્વિવચના•तता अथवा मायनान्तता डाय छे. भ , पुरुषश्च पुरुषश्च पुरुषौ, पुरुपश्च, पुरुषश्च, पुरुषश्च, पुरुषाः मही शेष समास ये छे. समानाथ वि३५ पढीमा ५ शेष समास थाय छ, २ "वक्रदण्डश्च कुटिलदण्डश्चेति वक्रदण्डौ अथवा कुटिलदण्डौ". मा प्रमाणे मही. शेष सभासत न्यारे में व्यतिनी विवक्षा डाय छे, त्यारे 'एकः पुरुषः । એ સમાસ થાય છે. અને જ્યારે ઘણી વ્યક્તિઓની વિવેક્ષા હોય છે,
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