Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 03
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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उत्तराध्य
___ सुधर्मास्वामी माह, मूलमू-इमे खलु ते थेरेहि भगवतेहि दस वभचेरसमाहिदाणा पण्णता जे भिक्खू सोच्चा निसम्म संजमवहुले सवरवहले समाहिवहुले गुत्ते गुत्तिदिए गुत्तभयारी सया अप्पमत्ते विहरेजा ॥३॥
छाया-इमानि ग्वल तानि पिरैर्भगद्भिर्दश ब्रह्मचर्यसमाधिम्यानानि मनप्तानि, यानि भिक्षु. श्रुत्वा निशम्य सयमसाठः सबरमहुल' समाधिवहुल. गुप्तो गुप्तेन्द्रियो गुप्तब्रह्मचारी सदा अप्रमत्तो विहरेत् ॥३॥
टोका~-'इमे ग्बलु' इन्यादि
हे जम्मूः ! 'थेरेहि स्थविरै भगवद्धि प्रनप्तानि कथितानि तानि दश बमवर्यसमाधिस्थानानि खलु उमानिसस्यमाणानि सन्ति । शेप पूर्वग्न ॥३॥
जबूस्वामी के प्रश्न का उत्तर सुधर्मास्वामी इस सूत्र द्वारा देते हैं'इमे ग्वलु' इत्यादि
अन्वयार्थ हे जम्बू ! (थेरेहि भगवतेहिं दस बभचेर समाहिहाणा पण्णत्ता-स्थविरैर्भगवद्भिर्दश ब्रह्मचर्य समाधिस्थानानि प्रज्ञप्तानि तानि ग्खलु इमानि) स्थविर भगवतोने जो ब्रह्मचर्यसमाधि के दश स्थान प्ररूपित किये है वे ये है कि (जे भिख सोच्चा०-यानि भिक्षु श्रुत्वा०) जिनको भिक्षु गुममुग्व से सुनकर और उनको हृदय में धारणकर सयमीजन अच्छी तरह सयम की आराधना करने वाले हो जाते है सवर तत्व से अच्छीतरह सुशोभित होने लगते है अच्छी तरह समाधि से मपन्न बन जाते है, गुप्त-मन वचन काया को गोपने वाले हो जाते है तथा गुप्तेन्द्रिय-इन्द्रियों को वश में कर लिया करते है एव गुप्त
જબૂસવામીના પ્રશ્નનો ઉત્તર સુધર્માસ્વામી આ સૂત્ર દ્વારા આપે છે "इमे खलु" त्या
मन्या - ४२५ थेरेहिं भगवतेहिं दस बभचेरसमाहिद्वाणा पणत्तास्थविरै गर्दिश ब्रह्मच समाधिस्थानानि प्राप्तानि स्थविर लगवाये ब्रह्म यसमाधिना रे स्थान प्रचित २ छ त थे छजे भिक्खू सोचायानि भिक्षु श्रुत्वा भिक्षु शुरुमुमयी सामगीन माने मेने या पाशन સયમીજન સારી રીતે સ યમની આરાધના કરવાવાળા બની રહે છે તે વરતત્વથી સારી રીતે સુશોભિત બની જાય છે સમાધિમાં સંપૂર્ણપણે તત્પર બની રહે છે ગુપ્ત મન, વચન, કાયાને ગોપવાવાળા થઈ જાય છે તથા ગુપ્તેન્દ્રિય-ઈન્દ્રિયને