________________
* श्री लँबेचू समाजका इतिहास *
४१
इति क्षत्रं कुलं क्षत्रे कुले जातः क्षत्रियः जो कुल वंश घावसे रक्षा करें अर्थात् बलवानसे सताये हुये निर्बलको बचावें व रक्षा करें वही क्षत्रिय है अर्थात् दया धारक है वही क्षत्रिय है इस लिये अहिंसकोंका धर्म जैन धर्म है वह समस्त जैन जाति में पाया जाता है। धर्म रक्षार्थ आत्मोत्सर्ग वे ही कर सक्ते हैं जिनके रागद्वेष मोह नहीं है विशेषकर ममत्व-रहित क्षत्रियही हो सकते हैं इस लिये जैन धर्म श्रद्धालुओं को जुहारू कहकर परस्पर विनय करना लिखा है अन्य जातियों में धीरे धीरे प्रमाद् भूल करते करते प्रथा उठ गई है लबेम्बूओंमें कुछ नियमित रूपसे अबतक चली आती है परन्तु Marathi संगति से जयगोपालकी देखा देखी जयजिनेन्द्र उच्चारण करना प्रारंभकर दिया है। यह कोई परस्पर विनय - वाचक शब्द नहीं है। देखा देखी इस प्रथासे पुरानी प्रथा जुहारुकी लम्बेचुओं से भी उठने लगी है सो ठीक नहीं । अपने स्वत्वको स्मरण कराने वाली प्रथाका उठाना उचित नहीं इत्यादि उपर्युक्त हेतुओंसे यह लम्बेचू जाति यादव वंश संतान हैं यह तो निर्विवाद ही सिद्ध है यद्यपि इतर लोगों को यह बात चाहे प्रकट न हो परन्तु खरउआ गोलालारे