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४] क्षपणासार
[ गाथा ३६ वृत्त यह सजा प्राप्त नहीं हो सकती है उसीप्रकार इन परिणामोको भी अनिवृत्तिकरण घर मजा प्राप्त नहीं हो सकेगी और असंख्यातगुणश्रेणीके द्वारा कर्मस्कन्धोके क्षपणके कारणभूत परिणामोको छोड़कर अन्य कोई भी परिणाम स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डवगतके कारणभूत नहीं हैं, क्योकि, उन परिणामोका निरूपण करने वाला सूत्र (बागम) नहीं पाया जाता है।
शंकाः-अनेक प्रकारके कार्य होनेसे उनके साधनभूत अनेक प्रकारके कारणों का अनुमान किया जाता है ? अर्थात् हवें गुणस्थानमे प्रति समय असंख्यातगुणी कर्मनिर्जरा, स्थितिकाण्डकघातआदि अनेक कार्य देखे जाते हैं इसलिए उनके साधनभूत परिणाम भी अनेकप्रकारके होने चाहिए ।
समाधानः-यह कहना भी नही बनता, क्योंकि एक मुद्गरसे अनेक प्रकारके प पालरूप कार्यकी उपलब्धि होती है ।
शंका:-वहां भी मुद्गर एक भले ही रहा आवे, परन्तु उसकी शक्तियोंमें एकापना नहीं बन सकता । यदि मुद्गरकी शक्तियोमे भी एकपना मान लिया जावे तो उससे एक कपालल्प कार्यकी उत्पत्ति होगी।
समाधानः-यदि ऐसा है तो यहां भी स्थितिकाण्डकघात, अनुभागकाण्डकघात, रियतिबन्धापसरण, गुणसक्रमण गुणश्रेणी शुभप्रकृतियों के स्थितिबन्ध और अनुभागबन्ध के कारणभूत परिणामोमे नानापना रहा आवे तो भी एकसमयमे स्थित नानाजीवोके परिणाम सहश ही होते हैं अन्यथा उन परिणामोके 'अनिवृत्ति' यह विशेषण नही बन सकता है।
शंफा:-यदि ऐसा है तो एक समयमें स्थित सम्पूर्ण अनिवृत्तिकरणगुणस्थान वालो के स्थितिकाण्डकघात और अनुभागकाण्डकघातकी समानता प्राप्त हो जावेगी ।
समाधानः--यह कोई दोष नही, क्योकि यह बात तो हमें इष्ट ही है ।
शंका:-प्रथमस्थितिकाण्डक और प्रथम अनुभागकाण्डकोको समानताका नियम तो नहीं पाया जाता है इसलिए उक्त कथन घटित नही होता है।
समाधानः-यह दोष कोई दोष नही है; क्योकि, प्रथमसमयमें घातकरके पदये हुए स्थितिकाण्डकोका और अनुभागकाण्डकोका एकप्रमाण नियम देखा जाता है। दूसरी बात यह है कि जल्पस्थिति और अल्प-अनुभागका विरोधी परिणाम उससे