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गाथा ३८५]
क्षपणासार
है। उससे उतरनेवालेके वहां संख्यातवर्षकी स्थितिवाला अन्तिम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (७३-७८)
चडपडण मोहचरिमं पदमं तु तहा तिघादियादीणं । असंखेजवस्तबंधोऽसंखेजगुणक्कमो छण्हं ॥ ३८५ ॥
अर्थः-चढनेवालेके मोहनीयकर्मका असख्यातवर्पवाला अन्तिम स्थितिबन्ध और गिरनेवालेके असख्यातवर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध (७९-८०) तथा चढ़नेवालेके तीन घातियाकर्मोका असंख्यातवर्षवाला अतिम स्थितिबन्ध और उतरनेवालेका असख्यात वर्षवाला प्रथमस्थितिबन्ध (८१-८२) एव चढनेवालेके तीन अघातियाकर्मोंका असख्यात वर्षवाला अन्तिम स्थितिबन्ध तथा उतरनेवालेके असंख्यात वर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध (८३.८४) ये छहो स्थान असख्यातगुणे क्रमवाले है ।
विशेषार्थः-उससे चढनेवालेके मोहनीयकर्मका असंख्यात वर्षमात्र अतिमस्थितिबन्ध असख्यातगुणा है जो कि असंख्यात हजारवर्षप्रमाण है और यह अन्तरकरणकालका समकालभावी स्थितिबन्ध है। उससे उतरनेवालेके मोहनीयकर्मका असख्यातवर्षमात्र प्रथम स्थितिबन्ध असख्यातगुणा है, गिरनेवालेके यहांपर असख्यातगणो प्रवृत्ति देखी जाती है । उससे चढनेवालेके ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन धातियाकर्मोका असख्यात वर्षवाला अन्तिम स्थितिबन्ध असख्यातगुणा है । यह स्त्रीवेदके उपशमकालके संख्यातवेभाग व्यतीत होजाने पर होता है। उससे उतरने वालेके तीनघातिया कर्मोंका असख्यात वर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध असख्यातगुणा है । उससे चढनेवाले के तीन अघातिया (नाम-गोत्र-वेदनीय) कर्मो का असख्यातवर्ष स्थितिवाला अन्तिम स्थितिबन्ध असख्यातगुणा है, यह सात नो कषायोके उपशामनकालमे सख्यातवेभागके व्यतीत होनेपर होता है । उससे उतरनेवालेके तीन अघातिया कर्मोका असख्यातवर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध असख्यातगुणा है । यहाँ उतरनेवालेके जो स्थितिबन्ध कहा है वह चढनेवालेके उस स्थितिबन्ध होने के काल स्थानको स्तोक अन्तरसे न प्राप्त होकर सभवता है। चढनेवालेके जो प्रथम स्थितिबन्ध होता है उतरनेवालेके उसके निकटवर्ती अवस्थाको पानेपर' अन्तिम स्थितिबन्ध होता है।'
१. जयधवल मूल पृ० १९३५-३६ ।