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गाथा ३८६ ] ' क्षपणासार
[३१३ .. अर्थः-चरम स्थितिकाण्डक सख्यातगुणा है (८८)। स्थितिबन्ध घटाकर पल्यप्रमाण स्थितिबन्ध करने के लिए जो स्थितिबन्धापसरणरूप पल्यका संख्यातवांभाग है वह संख्यातगुणा है (८६) । पल्य संख्यातगुणा है (६०)। चढ़नेवालेके बादरलोभ के स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है (६१) । उतरनेवालेके बादरलोभ ( अनिवृत्तिकरण ) के अन्तिम स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है (६२) ।
विशेषार्थः-उससे चरम स्थितिखण्ड अर्थात् जितनी स्थितियोंकोघातके लिए ग्रहण की गई है वे स्थितिया संख्यातगुणी हैं। ज्ञानावरणीय आदि कर्मोंका अन्तिम स्थितिखण्ड सूक्ष्मसाम्परायके अन्तमें होता है । मोहनीयकर्मका अन्तिम स्थितिखण्ड अन्तरकरणके समकालमे होता है । अर्थात् अन्तरकरणके समकालीन है। यद्यपि यह स्थितिखण्ड भी पल्यके असख्यातवे भागमात्र है तथापि पूर्वसे संख्यातगुणा है। उससे वह स्थिति जिसको बन्धापसरणके द्वारा ग्रहणकर पल्यप्रमाण स्थितिबंध किया गया संख्यातगुणी है। यद्यपि कम की गई स्थितिका प्रमाण भी पल्यके संख्यातवेभागमात्र है, किन्तु पूर्वसे संख्यातगुणा है। उससे पल्य सख्यातगुणा है, क्योंकि घटाई गई स्थितिका प्रमाण पल्यके सख्यातवेंभागमात्र था। उससे अनिवृत्तिकरणके उपशामकके प्रथम समयमे स्थितिबध पृथक्त्व लक्ष सागर प्रमाण होता है। उससे उतरनेवाले अनिवृत्तिकरणके चरमसमयमें होनेवाला स्थितिबध सख्यातगुणा है (८८-९२) ।' .
चंडपडअपुवपढमो चरिमो ठिदिबंधनो य पडणस्से । सच्चरिमं ठिदिसंतं संखेज्जगुणक्कमा अट्ठ ॥३८६॥
अर्थ-चढ़नेवालेके अपूर्वकरणका प्रथम स्थितिबध संख्यातगुणा है (९३) । गिरनेवालेके अपूर्वकरणका अतिम स्थितिबध सख्यातगुणा है (६४) । गिरनेवालेके अपूर्वकरणका अन्तिम स्थितिसत्त्व. सख्यातगुणा है (६५) । गाथा ३८८ व ३८६ में कहे गए आठस्थान संख्यातगुणेक्रमवाले है । ' विशेषार्थः-उससे चढनेवालेके अपूर्वकरणके प्रथमसमयमे स्थितिबंध सख्यात
गुणा है और वह अन्त कोड़ाकोड़ीसागरमात्र है। उससे गिरनेवालेके अपूर्वकरणके ; अन्तिमसमयमे स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है, वह दूणा अथवा यथासम्भव संख्यातगुणा
१. जयधवल मूल पृ० १६३६-३७ ।