Book Title: Labdhisara Kshapanasara
Author(s): Ratanchand Mukhtar
Publisher: Dashampratimadhari Ladmal Jain

View full book text
Previous | Next

Page 625
________________ पृष्ठ शब्द परिभाषा आनुपूर्वी नाम २७२, १६७ अन्तरकरण [नवम गुणस्थान मे] कर चुकने के प्रथम समय मे मोहनीय कर्म सम्बन्धी सात करण प्रारम्भ होते है । उसमे से यह प्रथम करण है । यथा-स्त्रीवेदनपुसकवेद के प्रदेश पुज पुरुषवेद मे सक्रान्त होते है । पुरुषवेद छ नोकपाय तथा प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान कषाय स० क्रोध मे ही सक्रान्त होते हैं। इसी तरह सज्वलन क्रोध तथा दोनो प्रकार के मान मान सज्वलन मे ही, मान सज्वलन तथा दोनो प्रकार की माया सज्वलन माया मे ही तथा माया सज्वलन और दोनो लोभ लोभ सज्वलन मे ही सक्रान्त होते हैं, यह आनुपूर्वी सक्रम है। [आनु पूर्वी सक्रम यानी एक नियत कम मे सक्रम] प्रायक्तकरण १६६ मायुक्त करण, उद्यत करण और प्रारम्भ करण ये तीनो एकार्थक हैं । तात्पर्यरूप क्षप० ४७ से यहा से लेकर नपुसकवेद को उपशमाता है, यह इसका अर्थ है । ज० ध० १३/ २७२ कहा भी है-नपु सक वेद का "आयुक्तकरण सक्रामक" ऐसा कहने पर नपु सक वेद की क्षपणा या उपशामना] के लिये उद्यत होकर प्रवृत्त होता है यह कहा गया है १ । जयघवला मूल पृ० .. ...... "ताधे चेव णवु सयवेदस्स आजु त्तकरणसकामगो" की जयधवला। प्रारोहकवरोहक २५७ उपशम श्रेणी चढने वाले को प्रारोहक तथा उतरने वाले को अवरोहक कहते हैं। धवल ६/३१८-१६ उत्कर्पण . विवक्षित प्राक्तन सत्कर्म से उसी कर्म का नवीन स्थितिबन्ध अधिक होने पर वन्ध के समय उसके निमित्त से सत्कर्म की स्थिति को बढाना उत्कर्षण कहलाता है । कहा भी है-'कम्मप्पदेसट्ठिदिवट्ठावणमुक्कड्डणा' अर्थात् कर्म प्रदेशो की स्थिति को बढाना उत्कर्षण है। [धवल १०/५२] अन्यत्र भी कहा है 'स्थित्यनुभागयोवृद्धि. उत्कर्पणम्" अर्थात् स्थिति व अनुभाग में वृद्धि का होना उत्कर्पण कहलाता है। [गो० क० गा० ४३८ की टीका] उत्पादानुच्छेद २०८ उत्पादानुच्छेद द्रव्याथिकनय को कहते हैं । यह सत्त्वावस्था मे ही विनाश को तथा क्ष० सा० २३, ६१ ।। स्वीकार करता है। उदाहरणार्थ-सूक्ष्मसाम्पराय नामक दसवें गुणस्थान मे अन्तिम समय तक सूक्ष्म लोभ का उदय है । वहा पर उसकी उदयव्युच्छित्ति वतलाई जाती है, सो यह कथन उत्पादानुच्छेद की अपेक्षा से जानना चाहिये । जय धवल ७/ ३०१-३०२, गो० क० गा० ६४ की बडी टीका (तत्र उत्पादानुच्छेदो नाम द्रव्या१ यानी क्षपणा व उपशामना, दोनो के ही अन्दर आयुक्तकरण शब्द प्रारम्भ करण अर्थ में प्रयुक्त होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656