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परिभाषा सक्रमण कहते है । ज० घ० १३/३०१, क० पा० सु० पृ० ७०० टिप्पण ( यह नियम से उदयावली मे होता है और अनुदय प्रकृति का होता है ) अन्यत्र भी कहा है-अनुदीर्ण प्रकृति के दलिक का जो उदय प्राप्त प्रकृति में विलय होता है उसे स्तिवुक सक्रमण कहते हैं । गति, जाति आदि पिण्डप्रकृतियो मे से जो अन्यतम प्रकृति उदय को प्राप्त है उस समान काल स्थिति वाली अन्यतम प्रकृति मे अनुदय प्राप्त प्रकृतियो को सक्रान्त करा कर जो वेदन किया जाता है उसे स्तिवुक सक्रमण कहा जाता है । जैसे-उदय प्राप्त मनुष्यगति मे शेप तीन नरक गति आदि का व उदय प्राप्त पचेन्द्रिय जाति मे शेप चार जातियो का । (जनलक्षणावली भाग ३ पृ० ११७६ सम्पा० वालचन्द्र सि० शा०) कहा भी है-उदयावली के अन्दर ही स्तिवुक सक्रमण होता है। उदयावली से बाह्य स्तिवुक सक्रमण नही होता है । उदयरूप निपेक के अनतर ऊपर के निषेक मे अनुदयरूप प्रकृति के द्रव्य का उदय प्रकृतिरूप सक्रमण हो जाना स्तिवुक संक्रमण है । जैसे नारकी के ४ गतियो मे से नरकगति का तो उदय पाया जाता है, अन्य तीन गतियो का द्रव्य प्रतिसमय स्तिवुक सक्रमण द्वारा नरकगतिरूप सक्रमरण होकर उदय मे पा रहा है । कहा भी है
पिंडपगईण जा उदयसगया तीए अणुदयगयाओ।
सकामिऊरण वेयइ ज एसो थियुगसकामो ॥पचस० स० ऋ० ८० गतिनामकर्म की पिण्ड प्रकृतियो मे से जिस प्रकृति का उदय पाया जाता है उसके अतिरिक्त अन्य तीन गतियो का द्रव्य प्रति समय उदयगति रूप सक्रमण करके उदयरूप निषेक मे प्रवेश करता है।
सप्तम नरक के नारकी के नरक गति के अन्तिम समय मे अनन्तर अगले निपेक मे अनुदयरूप तीन गति के द्रव्य का नरक गति रूप सक्रमण नही होगा, क्योकि अगले समय मे नरक गति का उदय नहीं होगा। किन्तु तिथंच गति का उदय होगा । अत गति के अन्तिम समय मे उदयरूप निषेक से अनन्तर ऊपर के निषेक मे जो द्रव्य नरक गति मनुष्यगति-देवगतिरूप है वह स्तिबुक सक्रमण द्वारा तिर्यच गतिरूप सक्रमण कर जायगा और तिर्यंचगति रूप मे उदय मे आयगा । इसीप्रकार अन्यत्र भी लगा लेना चाहिये । (रतनचन्द पत्रावली पत्र ७) अन्यत्र कहा भी है-द्रव्य, क्षेत्र, काल और भव का अनुकूल सयोग न मिलने
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