________________
३१०] क्षपणासार
[ गाथा ३८४ दुगुणा अर्थात् चार मासप्रमारण है। गिरनेवालेके क्रोधका जघन्य स्थितिबन्ध दूणा अर्थात् आठमास है। चढनेवालेके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध १६ वर्ष है। उसो स्थानपर अर्थात् उसीसमय चारों सज्वलन कषायोका स्थितिबन्ध ३२ वर्ष है । गिरनेवालेके पुरुषवेदका जघन्य स्थितिवन्ध चढनेवालेसे दूणा अर्थात् ३२ वर्ष है । उसी स्थान पर चारो सज्वलन कषायोका स्थितिबन्ध ६४ वर्ष है।
चडपडणमोहपढमं चरिमं चरिमं तु तहा तिघादियादीणं । संखेज्जवस्स बंधो संखेजगुणकमो छण्हं ॥३८४॥
अर्थ-चढनेवालेके मोहनीयकर्मका सख्यात वर्षवाला प्रथम स्थितिबन्ध और गिरनेवालेके सख्यातवर्षवाला अंतिम स्थितिबन्ध तथा चढनेवालेके तीन घातियाकर्मोका सख्यातवर्पवाला प्रथम स्थितिबन्ध व उतरनेवालेके सख्यातवर्षकी स्थितिवाला अन्तिम स्थितिवन्ध एव चढनेवालेके तीन अघातिया कर्मोका सख्यातवर्षको स्थितिवाला प्रथमस्थितिवन्ध और उतरनेवालेके तीन अघातिया कर्मोका अन्तिम स्थितिबन्ध ( ७३ से ८ ) ये छहो स्थान संख्यातगुणे क्रमवाले हैं।
विशेषार्थ-उससे चढनेवालेके अन्तरकरण करनेकी समाप्ति होनेके अनन्तर समयमे पाया जानेवाला मोहनीयकर्मका सख्यातवर्षकी स्थितिवाला प्रथम स्थितिबन्ध सस्यातगुणा है जो कि सख्यातहजार वर्षमात्र है। उससे उतरनेवालेके उस समयकी समान अवस्थामे पाया जानेवाला मोहनीयकर्मका सख्यातवर्षकी स्थितिवाला अन्तिमबन्न सक्ष्यातगुणा है। इसका प्रमाण भी सख्यातहजार वर्षमात्र है। जिसप्रकार पहले चहनेवाले से उतरनेवालेके दूणा स्थितिबन्ध कहा था वैसा अब नही जानना, किन्तु यथासम्भव सख्यातगुणा जानना । उससे चढनेवालेके तोन घातियाकर्मोका सख्यातवर्ष की स्थितिवाला प्रथम स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है ।' उससे उतरनेवालेके तीनघातिया कोका मल्यातवर्पकी स्थितिवाला अन्तिम स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। उससे चढनेजानके मात नोकपायोके उपशमकालमे उपशामक कालका सख्यातवा भाग बीत जानेपर तीन प्रघातियाकर्मोका सख्यातवर्पको स्थितिवाला प्रथम स्थितिबन्ध सख्यातगुणा
१. पपीकि मोहनीयके समान इनका अत्यधिक स्थितिवन्धापसरण असम्भव है। (ज.ध. मूल पृ
१६६४ ) जयपवल पृ १६३५ । गाथा २४८, २५६ व २६१ देखना चाहिए ।