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क्षपणासार ३०८]
[गाथा ३८० वाले मोहनीयकर्मके स्थितिबन्धकी जघन्य आवाधा सख्यात गुणी है ' (५२) । उससे उतरनेवालेके अपूर्वकरणके अन्तिमसमयमे पायी जानेवाली सर्वकर्मोकी अन्त कोटाकोटीसागरप्रमाण स्थितिबन्धको तत्प्रायोग्य अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उत्कृष्ट यावाधा संख्यातगुणी है (५३)। उससे चढनेवालेके अनिवृत्तिकरणके चरमसमयमे पाये जानेवाले मोहनीयकर्मका जघन्य स्थितिवन्ध सख्यातगणा है यह भी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है (५४) । उससे उतरनेवालेके अनिवृत्तिकरणके प्रथमसमयमे पाया जानेवाला मोहनीयकर्मका जघन्य स्थितिबन्धका प्रमाण सख्यातगुणा है । यहा सख्यातका प्रमाण दो जानना यह भी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण ही है (५५) । उससे चढनेवालेके सूक्ष्मसाम्परायके अन्तसमयमे पाया जानेवाला ज्ञानावरण, दर्शनावरण व अन्तराय इन तीन घातियाकर्मोका जघन्य स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है (५६) । उससे उतरनेवालेके सूक्ष्मसाम्परायके प्रथमसमयमे पाया जानेवाला ज्ञानावरण, दर्शनावरण और अन्तराय इन तीन घातियाकर्मोका जघन्य स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है जो दुगणा जानना (५७)। उससे उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त सख्यातगुणा है जो एक समयकम दो घडी प्रमाण है (५८) यहां अन्तदीपक न्यायसे पूर्वमे जो सर्वकाल कहे वे सभी अन्तर्मुहर्तमात्र ही जानना, क्योकि अतर्मुहूर्तके बहुत भेद है।
चडमाणस्स य णामागोदजहण्णट्ठिदीण बंधो य । तेरसपदासु कमसो संखेण य होति गुणिदकमा ॥३८०॥
अर्थः-चढनेवालेके नाम व गोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है (५६)। ये १३ पद क्रमशः सख्यातगुणे है ।
विशेषार्थः-उससे चढनेवालेके नाम व गोत्रकर्मका जघन्य स्थितिबन्ध सख्यातगुणा है जो सोलह मुहूर्तप्रमाण है (५६) । यह जघन्यबन्ध अपनी व्युच्छित्ति के चरमसमयमे जानना। ४६वे पदसे आगे ५६वे पद तक तेरह पदोमे सख्यातगुणित क्रम है।
१ और यह (माबाधा ) अन्तरायामसे ऊपर सख्यातगुणे अध्वानको व्यतीत करके स्थित है, इस
प्रकार यह वात इसी सूत्रसे जानी जाती है। ( ज घ मूल. पृ १९३३) २. जयधवल मूल पृ. १६३३-३४ । ३. ज. घ. मूल पृ. १६३४ ॥