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क्षपणासार
[गाया ३७७-७८ करणका काल संख्यातगुणा है (४३) । उससे चढनेवालेके अपूर्वकरणकाकाल ( अन्तमुहूर्त ) अधिक है।'
पडिवडवरगुणसेढी चढमाणापुवपढमगुणसेढी ।
अहियकमा उक्सामगकोहस्स य वेदगद्धा हु ॥३७७॥
अर्थः-गिरनेवालेका उत्कृष्ट गुणश्रेणिनिक्षेप विशेष अधिक है (४५) । चढनेवालेका अपूर्वकरणके प्रथम समयमे गुणश्रेणि निक्षेप विशेप अधिक है (४६) । उपशामकके क्रोधवेदककाल सख्यातगुणा है (४७) ।
विशेषार्थ:-उससे गिरनेवाले के सूक्ष्मसाम्परायके प्रथमसमयमे प्रारम्भ किया गया उत्कृष्ट गुणश्रेणि आयाम विशेष अधिक है, क्योकि यह अवरोहक सूक्ष्मसाम्परायअनिवृत्तिकरण-अपूर्वकरण व उपशमनाकालके सख्यातवेभाग इन कालोका समूहप्रमाण है (४५)। उससे चढनेवालेके अपूर्वकरणके प्रथमसमयमे प्रारम्भ हुआ उत्कृष्ट गुणश्रेणि आयाम अन्तर्मुहर्तसे अधिक है। यह भी अपूर्वकरण-अनिवृत्तिकरण-सूक्ष्मसाम्परायके कालसे अन्तर्मुहर्तप्रमाण अधिक है, किन्तु उतरनेवालेके कालसे चढनेवालेके कालका विशेषाधिकपना है ऐसा समझकर पूर्वसे यह अधिक कहा है ।।४६।। उससे चढनेवालेके क्रोधवेदककाल सख्यातगुणा है, क्योकि श्रेणिपर प्रारोहण करनेके पूर्व ही अन्तर्मुहूर्तकाल तक अप्रमत्तभावसे वर्तमान जीवके क्रोधवेदककालके साथ अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके प्रति प्रतिबद्धकाल यहापर विवक्षित है । अर्थात् अप्रमत्तगुणस्थानके साथ यहा अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरण सम्बन्धी क्रोधवेदककाल लिया गया है इसलिए वह पूर्वके कालसे संख्यातगुणा हो जाता है ।
संजदअधापवत्तगगुणसेढी दंसोवसंतद्धा ।
चारित्वंतरिगठिदी दंसणमोहंतरठिदीओं ॥३७८॥
अर्थ-अध"प्रवृत्तसयतका गुणश्रेणिनिक्षेप सख्यातगुणा है (४८) । दर्शनमोहनीयका उपशान्तकाल संख्यातगुणा है (४६) । चारित्रकी आन्तरिक स्थितिया सख्यात१ उ. घ. मूल पृ० १६३१-३२ । २. ज. ध मूल पृ. १६३२ ।