________________
“अथ चारित्रलब्धि अधिकार" दर्शनमोहको क्षपणाविधान की प्ररूपणाके अनन्तर देशसंयम और सकलसंयमलब्धि प्ररूपणाके लिये आगे का गाथा सूत्र कहते हैं
दुविहा चरित्तलद्धी देसे सयले य देसचारित्तं । मिच्छो अयंदो सयलें तेवि व देसो य लब्भेई ॥१६८। ।
अर्थ-चारित्र की लब्धि अर्थात् प्राप्ति, सो चारित्र देश और सकल के भेदसे दो प्रकार है । इसमे से देशचारित्रको मिथ्यादृष्टि या असंयतसम्यग्दृष्टि प्राप्त करता है और सकलचारित्रको मिथ्यादृष्टि या असयतसम्यग्दृष्टि अथवा देशचारित्री प्राप्त होता है ।
विशेषार्थ-देशचारित्रका घात करनेवाली अप्रत्याख्यानावरणकषायोके उदयाभावसे हिसादिक दोषोके एकदेश विरतिलक्षण अणुव्रतको प्राप्त होनेवाले जीवके विशुद्ध परिणाम होता है उसे देश चारित्र या सयमासयमलब्धि कहते है । सकल सावद्यकी विरतिलक्षण पांच महाव्रत, पाचसमिति और तीनगुप्तियो को प्राप्त होने वाले जीवका जो विशुद्धिरूप परिणाम होता है उसे सयमलब्धि जानना चाहिए, क्योकि क्षायोपशमिकचारित्रलब्धिको सयमलब्धि कहा गया है । ।
अब मिथ्यादृष्टिके देशसंयमको प्राप्तिके पूर्व पाई जानेवाली सामग्रीका कथन करते हैं
अंतोमुत्तकाले देसवदी होहि दित्ति मिच्छो हु । सोसरणो सुझतो करणंपि करेदि सगजोग्गं ॥१६॥
अर्थ-अन्तर्मुहूर्त के पश्चात् जो देशेवंती होगा ऐसे मिथ्यादृष्टिजीव प्रतिसमय अनन्तगुणीविशुद्धिसे वर्धमान होता हुआ आयु बिना सात कर्मोका बन्ध या सत्त्व अन्तकोड़ाकोडी मात्र अवशेष करनेके द्वारा स्थितिबधापसरणको तथा अशुभकर्मोके अनुभागको अनन्तवाभाग मात्र करने के द्वारा अनुभागबधापसरणको करता हुआ अपने करणंयोग्य परिणामकों करता है ।
१. ज घ. पु १३.५ १०७ । इतना विशेष है कि यह संयमलब्धि.१२ कषायो के अनुदयरूप उपशम
से तथा चारसज्वलन और है नोकषायो के देशोपशम से उत्पन्न होती है । ज ध. १३।१०६