Book Title: Labdhisara Kshapanasara
Author(s): Ratanchand Mukhtar
Publisher: Dashampratimadhari Ladmal Jain

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Page 599
________________ } गाथा ३६७-६८] क्षपरेणासार [ २६६ तुल्य होकर विशेष अधिक है, क्योकि उपरिम स्थितिबन्धकाल से नीचेका स्थितिबन्ध - काल यथाक्रम विशेष अधिक होता है (५) । इससे आरोहक के प्रपूर्वकरण के प्रथम - समय में स्थितिका उत्कृष्ट बधकाल और उत्कृष्ट काण्डकोत्कोररणकाल विशेष अधिक है । सुहमंतिमगुणसेढी उवसंत कसायगस्स गुणसेढी | "पविद्धाविय तिरियवि संखेजगुणिदकमा || ३६७॥ अर्थ—( इससे ) चरमसमयवर्ती सूक्ष्मसाम्परायिकका गुणश्रेणि निक्षेप सख्यातगुणा है (७) । इससे उपशान्तकषायका गुण-श्रेणिनिक्षेप सख्यातगुणा है ( ८ ) 1 इससे गिरनेवाले सूक्ष्मसाम्परायका 'कार्ल' सख्यातगुणा है ( 8 ) | ये तीनो क्रमसे सख्यातगुण है । 1 " विशेषार्थः''''उससे सूक्ष्मसाम्पराय के अन्तिमसमयमे पाया जानेवाला गलितावशेष गुणश्रेणी-आयाम सख्यातगुणा है, क्योकि अपूर्वकरणके प्रथमसमय में गुणश्र ेणिनिक्षेप अपूर्वकरण-अनिवृत्तिकरण व सूक्ष्मसाम्परायसे विशेष अधिक या वह गलकर सूक्ष्मसाम्परायके चरमसमयमें अन्तर्मुहूर्तप्रमाण रह गया । इसको गुण गिशीर्ष भी कहा गया है, क्योकि नीचे गलकर शेष गुणश्रेणिनिक्षेप शीर्ष भावसे देखे जाते है (७)। इससे उपशान्तकषायका गुणश्र ेणि-आयाम संख्यातगुणा है । यद्यपि यह काल उपशांतकषाय कालके ‘सख्यातवेभाग है, किन्तु - पूर्व गुण णिशीर्षसे सख्यातगुणा है ( 5 ) 1 उससे गिरनेवाले सूक्ष्मसाम्पराय काकाल सख्यातगुणा है, क्योकि पूर्वमे सूक्ष्मसाम्परायका संख्यातवां भाग काल था । (2)- 13 तग्गुणसेडी अहिया चलसुमो किहिउवसमा य । सुहुस्स य पढमठिदी तिरिणवि सरिसां विसेसाहियां ॥ ३६८ ॥ अर्थः— इससे उतरनेवाले सूक्ष्मसाम्परायिककी गुणये णि विशेष अधिक (१०) । इससे चढनेवालेका सूक्ष्मसाम्परायकाल, कृष्टि उपशमानेका काल र १ ज. ध. मूल. पृ० १६२६-२७ । २. ज. घ. पू. १६२७ 1

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