________________
गाथा ३६४-६५) क्षपणासार
[२९७ वहांसे स्त्रीवेदकी भी उपशामना प्रारम्भ कर देता है। दोनोंका उपशम करता हुआ प्रथम स्थितिका चरमसमय अर्थात् स्त्रीवेदका उपशामनाकाल पूर्ण होनेपर नपुसकवेद व स्त्रीवेद दोनोंको एक साथ उपशमा देता है, यह एक विभिन्नता है। इसके पश्चात् अपगतवेदी होकर युगपत सात नोकषायोको उपशमाता है । सातो नोकषायोका उपशामनाकाल तुल्य है। यह दूसरी विभिन्नता है इसीसे उतरनेवालेकी विभिन्नता जान लेनी चाहिए।'
आगे उपशमश्रेणीमें अल्पबहुत्वके कथनकी प्रतिज्ञारूप गाथा कहते हैंपुकोहस्त य उदए चडपलिदेऽपुव्वदों अपुव्वोत्ति ।
एदिस्से अद्धाणं अप्पाबहुगं तु वोच्छामि ॥३६४।।
अर्थः-पुरुषवेद और क्रोधकषायोदय सहित श्रेणि चढकर गिरनेवाला जीवके आरोहक अपूर्वकरणके प्रथम समयसे लेकर अवरोहक अपूर्वकरणके चरमसमयपर्यंत इस मध्यवर्ती कालमें जो काल संयुक्त पद हैं, उनके अल्पबहुत्व स्थानोका आगे कथन करेंगे।
विशेषार्थ:-यहां श्रोणि चढनेवालेको आरोहक और उतरनेवालेको अवरोहक जानना। तथा अल्पबहुत्वमें जहां विशेष अधिक कहा है वहा पूर्वसे कुछ अधिक जानना ।२
अथानन्तर २७ गाथाओं द्वारा अल्पबहुत्व स्थानोंका कथन करते हैं
अबरादो वरमहियं खंडुक्कीरणस्स अद्धाणं । संखगुणं अवरट्ठिदिखंडस्सुक्कीरणो कालो ॥३६५।।
अर्थ:-जघन्य अनुभाग काण्डोत्कीरण कालसे (१) उत्कृष्ट अनुभागकाण्डोकीरणकाल विशेष अधिक है (२) इससे जघन्य स्थितिकाण्डोत्कीरण काल संख्यातगुणा है । (३)
विशेषार्थः-सबसे स्तोक जघन्य अनुभाग कांडोत्कीरणकाल अन्तर्मुहर्तप्रमाण है सो यही ज्ञानावरणादि कर्मोका तो आरोहक-सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम अनुभाग१ जयधवल मूल पृ० १९२५ । २. जयधवल मूल पृ० १९२५ ।