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क्षपणासार अकरणोपशामनामे अन्तर्भाव हो जावेगा इसलिए इसका लक्षण इसप्रकार है-दर्शनमोहनीय कर्म उपशमित हो जानेपर अप्रशस्तोपशम, निधत्ति, निकाचित, बन्धन, उत्कर्पण, उदीरणा और उदय ये सातकरण उपशान्त हो जाते है तथा अपकर्षण और परप्रकृतिसक्रमण ये दो करण अनुपशान्त रहते है। अत' कुछ करणो के उपशमित होनेसे और अन्य करणोके अनुपशमित रहनेसे इसे देशकरणोपशामना कहते है । अथवा उपगमणि चढनेवाले जीवके अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयमे अप्रशस्त उपशमकरण, नियत्तिकरण और निकाचितकरण, ये तीनकरण अपने-अपने स्वरूपसे विनष्ट हो जाते है। ससार अवस्थामे इन तीनोकरणोके कारण उदय, सक्रमण, उत्कर्षण, अपकर्षण, उपशान्त थे अर्थात् होते नही थे, किन्तु इन तीन करणोका नाश होनेपर अपकर्षणादि क्रिया होने लगतो है। इनका विनाश होनेपर उपशमका अभाव नही होता, क्योंकि पूर्व संसारावस्थामे अप्रशस्त उपशमकरण आदि तीन करणोके द्वारा गृहीत प्रदेशोका उस स्वरूपसे ( अप्रशस्तोपशम, निधत्ति, निकाचित स्वरूपसे) जो विनाश होता है वह देशकरणोपशामना है। अप्रशस्त उपशम आदि तीन करणोका विनाश होनेपर अपफपंगादि क्रिया सम्भव होनेसे अनिवृत्तिकरण व सूक्ष्मसाम्परायमे देशकरणोपशामना होती है । अथवा नपुंसकवेदके प्रदेशाग्रका उपशम करते हुए जबतक उसका सर्वोपशम नहीं हो जाता तबतक उसका नाम देशकरगोपशामना है। अथवा नपू सकवेदके उपशान्त होनेपर और शेप कर्मों के अनुपशान्त रहने को अवस्था विशेषको देशोपकरणशामना कहते है, क्योकि करण परिणामोके द्वारा ( विवक्षित एक भागरूप ) कर्मप्रदेशोकी उपशान्त अवस्था हुई है ।
नवंकरणोको उपशामना सर्वकरणोपशामना है । अप्रशस्त उपशम, निधत्ति, निशानित आदि पाठ प्रकारके करणोका अपनी क्रियाको छोड़ कर प्रशस्त उपशामनाके बाग जो गर्योपशम होता है वह सर्वकरणोपशामना है'।
शद्धाः- यदि सर्वकरगोपशामनामे अपकर्पण आदि क्रियाका अभाव है तो पगलायम, निधनि, निकाचित करणोमे भी अपकर्पणादिका अभाव सभ्भव है ।
लादितिया अभावमे अप्रशस्तीपशमकरणादिको उत्पत्तिका प्रसग या जानेसे मापसे गम्भव ? '. ०७०६ ।