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२५६ ] क्षपणासार
[ गाथा ३१३ अर्थः-उदयगत प्रकृतियोके द्रव्यका निक्षेप उदय निषेकसे प्रारम्भ होता है, शेष कर्मोका उदयावलिसे बाहर निक्षेप प्रारम्भ होता है । छह कर्मोका गुणश्रेणि निक्षेप अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्म साम्पराय इन तीनसे विणेप अधिक है। उदयावलिके बाहर इन छह कर्मोका गलिताशेषआयामरूप गुण णिनिक्षेप प्रवृत्त होता है।
__विशेषार्थ –उदयरूप सज्वलनलोभकी द्वितीय स्थितिमे स्थित द्रव्यको अपकर्षित करके उसमे पल्यके असख्यातवेभागका भाग देकर एक भागको उदयल्प प्रथम समयसे लेकर गुणश्रेणियायामके अन्तिम निपेकपर्यन्त असख्यात गुणे क्रमसे तव तक निक्षिप्त, करता है, जबतक अन्तर पूरा नही जाता। बहुभागप्रमाण द्रव्यको गुणश्रेणि आयामके अन्तिम निषेकसे ऊपर पाये जाने वाले अन्तरायामको छोडकर उसके ऊपर द्वितीय स्थितिमे चयहीन नमसे निक्षिप्त करता है । तथा उदयरहित अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यानलोभकी द्वितीय स्थितिमे स्थित द्रव्यको अपकपित करके उदयावलिसे बाहर प्रथम समयसे लेकर गुणश्रेणिके अन्तपर्यन्त असख्यातगुणे क्रमसे और उसके ऊपर अन्तरायामको छोडकर द्वितीय स्थितिमे चयहीन क्रमसे पूर्ववत् निक्षिप्त करता है। आयु व मोहके बिना छहकर्मोके द्रव्यको अपर्पित करके उसमे पल्यके असंख्यातवे भागका भागदेकर उसमेसे एक भाग उदयावलिमे देता है और बहुभाग गुणश्रेणि आयाममे देता है । सो इनका यह गुणश्रेरिणायाम उतरनेवाले सूक्ष्मसाम्पराय, अनिवृत्तिकरण और अपूर्वकरणके सम्मिलित कालसे कुछ अधिक प्रमाण युक्त गलितावशेषरूप जानना । इसमे असख्यातगुणा क्रमयुक्त द्रव्य देता है। अपकर्पित द्रव्यमें जो वहुभाग रहा उसको उपरितन स्थितिमे चयहीन क्रमसे देता है।'
श्रोदरसुहुमादीए बंधो अंतोमुहुत्त वत्तीसं ।
अडदालं च मुहुत्ता तिघादिणामदुगवेयणीयाणं ॥३१३॥
अर्थ -- उपशान्तकषायसे अवतरित हुए जोवके सूक्ष्मसाम्परायके आदिमें तीन घातिया कर्मोका अन्तर्मुहूर्तप्रमाण, नामद्विकका बत्तीस मुहूर्तप्रमाण और वेदनीयका अडतालीस मुहूर्तप्रमाण बन्ध होता है।
विशेषार्थः-उपशान्तकपायसे उतरते हुए सूक्ष्मसाम्परायके प्रथम समयमें १ जयधवल मूल पृ० १८६२ ।