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क्षपरणासार
[ गाथा ३३१
अर्थः- लोभका असंक्रमण, छह आवलियां बीत जानेपर उदीरणा, मोहनीय का ग्रानुपूर्वी सक्रमण ये नियम थे, किन्तु अध पतन होनेपर इनसे विपरीत होने
लगता है ।
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विशेषार्थः - ग्यारहवे उपशान्तमोह गुणस्थानसे गिरनेवाले सभी जीवोके छह ग्रावलियो के बीत जानेपर ही उदीरणा हो ऐसा नियम नही रहा, किन्तु बन्धावलि व्यतीत होनेपर उदीरणा होने लगती है । उपशमश्र णि चढनेवालोके यह नियम बतलाया गया था कि नवोन बधनेवाले कर्मोकी उदीरणा बन्धके छह आवलि पश्चात् ही हो सकती है, उससे पूर्व नही, किन्तु श्र णिसे उतरने वाले के लिए यह नियम नही रहा । उनके एक आवलिके पश्चात् ही बधे हुए कर्मोकी उदीरणा होने लगती है । कुछ आचार्य ऐसा व्याख्यान करते है कि ग्यारहवे गुणस्थानसे गिरते समय भी जबतक मोहनीय कर्मका सख्यातवर्षप्रमाण स्थितिबन्ध होता है तबतक छह प्रावलियोके व्यतीत होनेपर ही उदीरणाका नियम रहता है, किन्तु जहासे मोहनीय कर्मका स्थितिबंध असख्यातवर्पप्रमाण होने लगता है वहासे छह आवलि पश्चात् उदीरणाका नियम नही रहता। परन्तु यह व्याख्यान चूरिंगसूत्र ४८१ के अनुरूप नही है । उपशामकके अंतरक्रिया समाप्तिकालमे जो यह मोहनीयका आनुपूर्वी सक्रमण व संज्वलन लोभके असक्रमणका नियम हो गया था वह नियमभी श्रेणिसे उतरने वाले के प्रनिवृत्तिकरणकालसे लेकर नष्ट हो गया अब मोहनीयकर्मका अनानुपूर्वीसक्रमण तथा लोभका भी सक्रमण होने लगा ।
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शङ्का–उपशमश्रेणिसे उतरनेवालेके सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानके प्रथमसमयसे ही मोहनीय कर्मका अनानुपूर्वी सक्रमण क्यो नही कहा गया ?
समाधान— नही कहा गया, क्योकि सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानमें मोहनीयकर्मके वन्वका प्रभाव होनेसे मोहनोयकर्मका सक्रमण सम्भव नही है । इसीलिए सूक्ष्मसाम्परायमे सज्वलनलोभका सक्रमण भी नही होता । जबतक तोन प्रकारकी माया (नज्वलनमाया, प्रत्याख्यानमाया, अप्रत्याख्यानमाया ) का अपकर्षरण नही होता तब तक मोहनीयकर्म के अनानुपूर्वीसक्रमणकी उत्पत्ति नही होती, क्योकि सज्वलन लोभके प्रतिग्रहका अभाव होनेसे सक्रमणको प्रवृत्ति सम्भव नही है । '
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मूल पृ० १३०६-७ ।