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क्षपणासार
[ गाथा ३५४-६० कषायोदयसे श्रोणि चढता है उसका ( प्रथम स्थिति ) काल समाप्त होनेपर उपरि अनन्तरवर्ती उदयमे आनेवालो मोह ( कषाय ) की प्रथम स्थिति करता है ॥३५५॥ मानोदयसे श्रेणि चढनेवाला उदयरहित क्रोधको उसके काल में उपशमाता है, और मायासे श्रेणि चढनेवाला उदयरहित क्रोध और मानको उनके कालमे उपशमाता है ॥३५६।। लोभोदयसे श्रेणि चढनेवाला अनुदय स्वरूप क्रोध-मान-मायाको अपने-अपने कालमे उपशमाता है, उदयरहित कषायोकी प्रथमस्थिति नही होती ॥३५७॥ मानोदयसे श्रणि चढकर गिरनेवालेके क्रोध व मानके उदयकालप्रमाण मानोदयकाल होता है । त्रिविध मानकी गलितावशेष गुणश्रेणि होती है ॥३५८।। मान या माया अथवा लोभके उदयसे श्रेणि चढकर गिरनेवालेके अपनी-अपनी कषायके उदय होनेपर नव, छह, तीन कषायोकी गलितावशेष गुणश्रेणि होती है ।।३५६॥ जिस कषायोदयसहित चढकर गिरा हुआ जीव उस कषायको अपकर्षित कर अन्तरको पूरता है। यह पुरुषवेदोदयसहित जीवका कथन है ॥३६०॥
विशेषार्थः-पुरुषवेदोदयसहित क्रोध, मान, माया या लोभके उदयके साथ उपशमश्रोणि चढनेवालेके अधःप्रवृत्तकरणके प्रथमसमयसे लेकर अन्तरकरण करके नपु सकवेद व स्त्रीवेदके उपशमानेके अनन्तर सात नोकषायकी उपशामनाके अन्ततक कोई क्रोधसे श्रोणि चढ़नेवालेकी प्ररुपणा और अन्य कषायसे उपशमश्रेणि चढ़नेवाले की प्ररुपरणामे कोई अन्तर नहीं है। क्रोधका वेदन ( अनुभव ) करते हुए उपशमश्रोणि चढनेवाला तीनप्रकारके क्रोधको उपशमाता है, किन्तु मानोदयसे उपशमश्रेरिण चढनेवाला मानका वेदन करते हुए तीन प्रकारके क्रोधको उपशमाता है। दोनोके क्रोधके उपशमानेका काल सदृश है नानापन नही है। क्रोधोदयवालेके जहांपर क्रोध का उपशमनकाल है वहीपर मानवालेके क्रोधका उपशामना काल है। क्रोधसे चढ़नेवालेके जिसप्रकार क्रोधकी प्रथमस्थिति अन्तर्मुहर्तप्रमाण थी उसप्रकार मानोदयसे श्रेणि चढनेवालेके क्रोधकी अन्तर्मुहूर्त प्रमाणवाली प्रथमस्थिति नही होती, किन्तु अन्तर करनेपर मानकी प्रथम स्थिति होतो है । क्रोधोदयसे श्रोणि चढ़नेवालेके जितनी कोच और मान दोनोको प्रथम स्थिति थी उतनी मानोदय श्रोणि चढनेवालेकी मानकी प्रथमस्थिति होती है ।
शंका-मानोदयसे श्रेणि चढनेवालेके मानकी प्रथमस्थितिमें वृद्धि होकर