Book Title: Labdhisara Kshapanasara
Author(s): Ratanchand Mukhtar
Publisher: Dashampratimadhari Ladmal Jain

View full book text
Previous | Next

Page 591
________________ क्षपणासार गाथा ३५४-३६० ] [ २६१ जस्सुदयेणारूढो सेडिं तस्लेव ठविदि पढमठिदि । सेसाणावलिमेत्तमोत्तण करेदि अंतरं णियमा ॥३५४॥ जस्सुदयेणारूढो सेटि तकालपरिसमत्तीए । पढमहिदि करेदि हु अणंतरुवरुदयमोहस्स ॥३५५॥ माणोदएण चडिदो कोहं उसमदि कोह अद्धाए। मायोदएण चडिदो कोहं माणं सगाए ॥३५६॥ लोहोदएण चडिदो कोहं माणं च मायमुवसमदि । अप्पप्पण अद्धाणे ताणं पढमहिदी णस्थि ॥३५७॥ माणोदयचडपडिदो कोहोदयमाणमेत्तमाणुदो। माणतियाणं सेसे सेससमं कुणदि गुणसेढी ॥३५८॥ माणादितियाणुदये चडपडिदे सगसगुदयसंपत्ते । णवछत्तिकसायाणं गलिदवसेसं करोदि गुणसेढी ॥३५६॥ जस्सुदएण य चडिदो तम्हि य उक्कट्टियम्हि पडिऊण । अंतरमारे दि हु एवं पुरिसोदए चडिदो ॥३६०॥ अर्थः-पुरुषवेद सहित क्रोधोदयसे श्रेणि चढनेवालेके क्रोध-मान-माया-लोभकी पृथक्-पृथक प्रथम स्थिति होती है। मानोदयसे श्रेणि चढ़नेवालेके क्रोधका उदय न होने से क्रोध और मान इन दोनोकी प्रथमस्थितिप्रमाण मानकी प्रथमस्थिति होती है। मायोदयसे श्रेणि चढनेवालेके क्रोध मानका उदय नही अतः क्रोध-मान-माया इन तीन प्रथम स्थितिप्रमाण मायाकी प्रथमस्थिति होती है । लोभोदयसे श्रेरिण चढ़नेवालेके क्रोध-मान-मायाका उदय नही अतः लोभकी प्रथमस्थितिका प्रमाण क्रोध-मान-मायालोभ इन चारकी प्रथमस्थितिके तुल्य है ॥३५३।। जिस कषायके या वेदके उदयसे श्रेणि चढ़ता है उसकी अन्तमुहर्तप्रमाण प्रथमस्थितिको छोड़कर और शेष अनुदयरूप वेद व कषायोकी आवलिमात्र स्थितिको छोड़कर 'अन्तर' करता है' ॥३५४।। जिस १. देखो गाथा २४२ ( यही भाव है ); जयघवल पु० १३ पृ० २५३ ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656