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गाथा ३१७ ]
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घातिया कर्मोका स्थितिबन्ध दो दिनसे कम, नाम- गोत्र और वेदनीय इन तीन अघातिया कर्मोका स्थितिबन्ध कुछकम चारवर्षप्रमाण होता है ।
क्षपणासार
विशेषार्थ :- अवरोहक बादरसाम्पराय अनिवृत्तिकरणके प्रथम समय में संज्वलन लोभका स्थितिबन्ध अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है जो आरोहक अनिवृत्तिकरण के अन्तिमसमय सम्बन्धी स्थितिबन्ध दोगुणा है । तीन घातियाकर्मोका कुछ कम दो दिन, नाम - गोत्र और वेदनीयकर्मका कुछकम चारवर्षप्रमाण स्थितिबन्ध है । अन्तर्मुहूर्त पर्यन्त इसी - प्रकार समानरूपसे वन्ध हुआ । पश्चात् द्वितीय स्थितिबन्ध सज्वलन लोभका तो पहले से विशेष अधिक, तीन घातिया कर्मोका पृथक्त्व दिन प्रमाण, तीन अघातिया कर्मोका संख्यातहजारवर्ष प्रमाण हुआ । इसप्रकार वृद्धिरूप सख्यातहजार स्थितिबन्ध होने पर लोभवेदककाल सम्बन्धी द्वितीय त्रिभागका सख्यातवाभाग व्यतीत हुआ तब सज्वलनलोभका पृथक्त्वमुहूर्त, तीनघातिया कर्मो का अहोरात्र से बढकर पृथक्त्व हजारवर्ष और तीन अघातिया कर्मो का सख्यात हजारवर्षप्रमाण स्थितिबन्ध हो जाता है तथा सहस्रो स्थितिबन्ध व्यतीत हो जानेपर लोभवेदकका काल समाप्त होता है । प्रारोहकके लोभवेदककालसे अवरोहकका लोभवेदककाल किंचित् न्यून है । इसीप्रकार मायावेदक कालादिकमें भी किंचित् न्यूनता जानना । जिस कषायके जितने कालमें उदयका भोगना होता है उतने प्रमाण उसका वेदककाल होता है । '
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श्रागे मायावेदक के क्रियाविशेषका कथन दो गाथाओं में करते हैंदरमायाढमे मायातिरहं च लोहतिरहं च । दरमायावेदकालाद दियो दु गुणसेढी || ३१७॥
अर्थः~~~( सज्वलनलोभसे ) मायामे अवतरण करनेके प्रथम समय में तीन प्रकारकी ( अप्रत्याख्यानावरण, प्रत्याख्यानावरण और सज्वलन ) माया व तीनप्रकार के लोभकी अवतरित माया वेदककालसे अधिक प्रायामवाली गुणश्र णि करता है । विशेषार्थः – लोभवेदककालके अनन्तर मायावेदककाल के प्रथमसमयमे उतरने वाला अनिवृत्तिकरणजीव अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन मायाके द्रव्यको अपनी-अपनी द्वितीय स्थितिमेसे अपकर्षितकर उदयरूप सज्वलनमायाके द्रव्यको तो
१ ज. घ. मूल पृ. १८६७-६८ ।