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लब्धिसार
[ गाथा १८३ १५० ] करणमें प्रथम अनुभागकाण्डकका उत्कीरणकाल विशेष अधिक है ॥२॥ उससे एकान्तानुवृद्धिकालका अन्तिम स्थितिकाण्डक उत्कीरणकाल व जघन्य स्थितिबन्धकाल दोनो तुल्य होकर सख्यातगुण है, क्योकि एक स्थितिकाण्डकमे हजारों अनुभागकाण्डक होते है ।। ३ ।। ( गा. १७८ )
उससे अपूर्वकरणके प्रथम स्थितिकाडक व स्थितिबन्धकाल विशेष अधिक है ॥४॥ उससे सख्यातगुणा एकान्तानुवृद्धिकाल है । यद्यपि यह काल भी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है, तथापि इस एकान्तानुवृद्धिकालमे सख्यातहजार स्थितिकाडक उत्कीरणकाल व स्थितिवन्धकाल होते है इसलिये यह सख्यातगुणा हो जाता है ।।५।। उससे अपूर्वकरणका काल सख्यातगुणा है । यहा तत्प्रायोग्य सख्यात अक गुणाकार है । यहा पर अनिवृत्तिकरण नही है इसलिये तद्विषयक अल्पबहुत्वका विचार भी नहीं किया गया है ।।६।। ( गा. १७६)
उस अपूर्वकरणकालसे जघन्य सम्यक्त्वकाल, मिथ्यात्वकाल, सम्यग्मिथ्यात्वकाल तथा जघन्य असंयत-देशसयतकाल व सकल सयमकाल ये छहो काल परस्पर सदृश होकर भी सख्यातगुणे है ॥७॥ उससे संयमासयम (देशसयम) गुणश्रेणिकाल सख्यातगुणा है ॥८॥ (गा. १८० )
उससे एकान्तानुवृद्धिकालके अन्तिम बन्धकी जघन्य आबाधा संख्यातगुणी है ॥६॥ उससे अपूर्वकरण के प्रथम समयमे होने वाले बन्धकी आबाधा सख्यातगुणी है। यह भी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होकर भी पूर्व की आबाधासे संख्यातगुणी है ॥१०।। उससे एकान्तानुवृद्धिके अन्तिम समयमे होनेवाला पल्योपमके सख्यातवेभाग प्रमाण जघन्य स्थितिकाण्डक असख्यातगुणा है, क्योकि चरम स्थितिकांडक पल्यके सख्यातवेभाग प्रमाण है इसलिये पूर्वके अन्तर्मुहूर्तकालसे यह चरम स्थितिकांडक असख्यातगुणा है ।। ११ ॥ ( गा. १८१-८२)
उससे अपूर्वकरणका प्रथम जघन्य स्थितिकाडक, पल्योपमके सख्यातवेभाग होते हुए भी सख्यातगुणा है, क्योकि पूर्वोक्त चरम स्थितिकांडकसे सख्यात हजार स्थितिकाण्डक गुणहानिया नीचे उतरकर यह अपूर्वकरणके प्रथम समयमें प्राप्त हुआ है ।।१२।। उससे सख्यातगुणा पल्य है ॥१३॥ उससे अपूर्वकरण के प्रथम समयमे होनेवाला सागरोपमपृथक्त्वप्रमाण स्वरूप उत्कृष्ट स्थितिकांडक है ॥१४॥ उससे सख्यातगुणा जघन्य स्थितिवन्ध है, क्योकि यहा एकान्तानुवृद्धिके अन्तिम समयमें होनेवाले अन्तः