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लब्धिसार
[ गाथा २८७-२८६
मदत
व्य
दिव्या
मध्यम
|| पूर्वकृष्टि
संदृष्टि न. ४ मे मध्यमखण्डद्रव्य मिलाने पर सदृष्टिकी आकृति निम्न प्रकार हो जाती है -
उभय खण्ड
द्रव्य
विशेष
द्रव्य
त्य
विशेष अपूर्वकृति द्रव्य द्रव्य
सम्वट्टिका
इसप्रकार द्रव्य देनेका विधान जानना चाहिए । यद्यपि द्रव्य तो युगपत् जितना देने योग्य है उतना दिया जाता है; तथापि समझने के लिये पृथक्-पृथक् विभाग करके वर्णन किया है।
हेट्ठासीसं थोवं उभयविसेसे तदो असंखगुणं । हेट्ठा अणंतगुणिदं मज्झिमखंडं असंखगुणं ॥२८७॥
अर्थ-(पूर्वोक्त गाथा २८६ मे) कहे गये चारप्रकारके द्रव्योमे अधस्तनशीर्ष विणेप द्रव्य सबसे स्तोक है । इससे उभयद्रव्य विशेष असख्यातगुणा है। इससे अधस्तनप्टि द्रव्य अनन्तगुणा है और इससे मध्यमखण्ड द्रव्य असख्यातगुणा है ऐसा जानना।
तृतीयादि समयोंमें कृष्टियों सम्बन्धी विशेष करते हुए निक्षेपद्रव्यके पूर्व और अपूर्वगत संघि विशेष का कथन करते हैं
भवरे वडगं देदि हु विसेसहीणक्कमेण चरिमोति । तत्तो णंतगुणणं विसेसहीणं तु फड्ढयगे ॥२८॥ णवरि असंखाणंतिमभागणं पुवकिट्टिसंधीसु । इंट्टिमखंडपमाणेणेव विसेसेण होणादो ॥२८६।।