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लब्धिसार
[ गाथा १८८
१५६ ]
गुरणा है, क्योकि जाति विशेष कारण है । असयत सम्यग्दृष्टि तिर्यचके सर्वविशुद्धिसे देशसयमको ग्रहण करने के प्रथमसमयमे उत्कृष्ट प्रतिपद्यमानस्थान होता है जो पूर्वस्थान से अनन्तगुणा है । सर्वविशुद्ध असयतसम्यग्दृष्टि मनुष्यके देशसयमको ग्रहण करनेके प्रथम समयमे पूर्वस्थान अनन्तगुणा उत्कृष्ट प्रतिपद्यमान लव्धिस्थान होता है । जघन्य प्रतिपद्यमान स्थानवाले मनुष्यके दूसरे समय मे जघन्य अनुभयस्थान होता है । इसीप्रकार तिर्यंचके जघन्य अनुभयस्थान होता है । ये दोनो स्थान अपने से पूर्व - पूर्व स्थानकी पेक्षा अनन्तगुणे हैं । सर्वविशुद्धि तिर्यंचके पूर्वस्थानसे अनन्तगुणा उत्कृष्ट अनुभवस्थान स्वस्थानमें ही होता है । सयम के अभिमुख हुए सर्वविशुद्ध देशसंयत मनुष्य के अन्तिम समयमे उत्कृष्ट अनुभयस्थान अनन्तगुरणा होता है' |
देशसयतजीव अप्रत्याख्यानावरणकषायको नही वेदता, क्योकि वहा उसकी उदयशक्तिका अत्यन्तक्षय पाया जाता है । प्रत्याख्यानावरणीय कषाय भी देशसयमका आवरण नही करती, क्योकि सकलसयमका प्रतिबन्ध करनेवाले कषायका देशसयम मे व्यापार नही होता ? शेष चार सज्वलनकषाय और नौ नोकषाय उदीर्ण होकर देशसयमको देशघाति करते है । अनन्तानुबन्धीकपायके उदयका विनाश पहले ही हो गया है । ये तेरह कषाये देशघातिरूपसे उदीर्ण होकर देणसयमको क्षायोपशमिक करती है । यदि चार सज्वलनकषाय और नौ नोकपायका देशघाति उदय न हो तो देशसंयमकी उत्पत्ति नही हो सकती । यदि प्रत्याख्यानका वेदन करता हुआ शेष चारित्रमोहनीयका वेदन नही करे तो देशसयमलब्धि क्षायिक हो जावे । चार सज्वलन और नौ नोकपायका देशघातिरूपसे उदय श्रवश्यभावी है ।
॥ इति देशचारित्र विधान ॥
ज. घ. पु १३ पृ १४६ - १५३, व पु. ६ पृ २७८-२५०, क. पा. सु. पृ. ६६६-६७ । ध. पु. ५ पृ. २०२, ज घ. पु. १३ पृ १५४ ।
तात्पर्य यह है कि ४ सज्वलन और नोकषायो के सर्वघातिस्पर्धको के उदयक्षय से; और उन्ही के देशघाति-स्पर्घंको के उदय से सयमासयम लब्धि अपने स्वरूप को प्राप्त करती है । इसलिये यह क्षायोपशमिक है । ( जयधवलामूल ताम्रपत्र वाली प्रति प १७६४, जघ १३११५५ ) अथवा क्षायोपशम नामक चारित्रमोहनीय कर्म का उदय होने पर सयतासंयतपना उत्पन्न होता है इसलिये यह (देशसयम ) भाव क्षायोपशमिक है । प्रत्याख्यानावरण चतुष्क, सज्वलन चतुष्क और नवनोकषायो के उदय के सर्वात्मना चारित्रविनाशशक्ति का प्रभाव होने से ; उदय की ही क्षयज्ञा है । उन्ही प्रकृतियो की उत्पन्न हुए चारित्र का श्रावरण नही करने के कारण उपशम सज्ञा है । क्षय और उपशम इन दोनो से उत्पन्न देशसयम भाव क्षायोपशमिक है । (घ ५।२०२,
घ ७ ।
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ज. घ. पु १३ पृ १४६-१५६, क. पा. सु. पृ. ६६७-६८ ।
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