________________
गाथा २५३ ] लब्धिसार
[ २०१ उदीरणा और उदयादिरूप द्रव्यके अल्पबहुत्वका निदश करने के लिए अगली गाथा कहते हैं
संडादिमउवसमगे इस्स उदीरणा य उदओं य । . संडादो संकमिदं उत्समियमसंखगुणियकमा ॥२५३॥
अर्थ-नपुंसकवेदके उपशम सम्बन्धी प्रथम समयमें उदय प्राप्त अन्य प्रकृतियों का उदीरणा द्रव्य, उन्हीका उदयरूप द्रव्य, नपु सकवेदका अन्य प्रकृतियोमे सक्रमित होनेवाला द्रव्य और नपु सकवेदका उपशमित होनेवाला द्रव्य क्रमशः असख्यातगुणे हैं ।
विशेषार्थ-गाथा मे 'इट्ठस' शब्दके द्वारा नपुसकवेदके अतिरिक्त अन्य सब उदयरूप प्रकृतियोका ग्रहण होता है । प्रथम समयमे नपुसकवेदके उपशामक जीवके द्वारा वेदी जाने वाली प्रकृतियोका उदीरणा द्रव्य असख्यात समयप्रबद्धप्रमाण होनेपर भी आगे कहे जानेवाले पदोकी अपेक्षा स्तोक है । वेदी जानेवाली सभी प्रकृतियोके उदीरणा सम्बन्धी द्रव्यसे उदय सम्बन्धी द्रव्य असख्यातगुणा है, क्योकि अन्तमुहर्तकालप्रमाण सञ्चित गुणश्रेणिके गोपुच्छाके माहात्म्यसे इसका निर्णय होता है कि प्रकृतमें उदीरणाके द्रव्यसे उदयका द्रव्य असख्यातगुणा है । उदय द्रव्यसे नपुसकवेदका अन्य प्रकृतियोंमें सक्रमित होनेवाला प्रदेशपुज ( द्रव्य ) असंख्यातगुणा है, क्योकि अपकर्षण सम्बन्धी द्रव्यके असख्यातवेभागसे प्रतिबद्ध उदय सम्बन्धी द्रव्य है, किन्तु यह पर प्रकृतियोमे सक्रमित होनेवाला द्रव्य गुणसक्रमणरूप है। इसलिए असख्यातगुणा है। इसका भी कारण यह है कि गुणसक्रम सम्बन्धी भागहारसे अपकर्षण सम्बन्धी भागहार असख्यातगुणा होता है । सक्रमित होनेवाले प्रदेशपुजसे नपुसकवेदका उपश मित होने वाला प्रदेशपु ज (द्रव्य) असख्यातगुणा है, क्योकि उस समय शेष प्रकृतियोके उपश मित होने वाले प्रदेशपुजका अभाव है । गुणसक्रमण सम्बन्धी भागहारसे असख्यातगुणे हीन भागहारके द्वारा भाजित करने पर जो एक भाग लब्ध प्राप्त हो उतना उपश मित होने वाला प्रदेशपू ज है इसलिए सक्रमित होने वाले द्रव्यसे असख्यातगुणा सिद्ध होगा। जिसप्रकार नपु सकवेदके उपशामकके प्रथम समयमे यह अल्पबहुत्व है, उसीप्रकार द्वितीया दि समयोमे भी जानना चाहिए ।
१. ज. ध पु. १३ पृ. २७३-७४ ।