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गाथा २८३ ]
लब्धिसार
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विशेषार्थ-तत्पश्चात् सख्यातहजार स्थितिबन्धोंके हो जानेपर बादरलोभकी प्रथम स्थितिका अर्धभाग व्यतीत हो जाता है। अर्धभागसे कुछ अधिक अर्धभागका ग्रहण होता है उस अर्धभागके अन्तिम समयमें लोभसज्वलनका स्थितिबन्ध घटकर दिवसपृथक्त्व प्रमाण हो जाता है । शेष कर्मोंका स्थितिबन्ध संख्यातहजार वर्षप्रमाणसे घटकर हजारवर्ष पृथक्त्वप्रमाण होता है, परन्तु उस समय अनुभाग सत्कर्म स्पर्धकगत ही होता है।
अब संज्वलनलोभके अनुभागसत्त्वकी कृष्टिकरण विधि कहते हैंविदियद्धे लोभावरफड्डयट्ठा करेदि रसकिहि । इगिफड्डयवग्गणगद संखाणमणंतभागमिदं ॥२८३॥
मर्थ-(बादरलोभसज्वलनकी प्रथमस्थितिके) दूसरे अर्धभागमें लोभके जघन्यस्पर्धक के नीचे अनुभागकृष्टियोंको करता है । उनका प्रमाण एक स्पर्धककी वर्गणाओके अनन्तवे भागप्रमाण है।
विशेषार्थ-बादरलोभसंज्वलनकी प्रथमस्थितिके प्रथम अर्धभागके व्यतीत हो जाने पर द्वितीय अर्धभागमें लोभसज्वलनके अनुभाग सत्कर्म सम्बन्धी जघन्य स्पर्धकके नीचे अनन्तगुणी हानिरूपसे अपवर्तितकर अनुभागकृष्टियोको करता है । सबसे जघन्य लतासमान स्पर्धककी प्रथमवर्गणा के अविभागप्रतिच्छेदोसे अनन्तगुणे हीन अनुभाग युक्त सूक्ष्मकृष्टियोंको करता है। एक स्पर्धककी वर्गणाप्रोके आयाममें तत्प्रायोग्य अनन्तसे भाजितकर वहां एक खण्डमें जितनी वर्गणाए प्राप्त हो तत्प्रमाण कृष्टियां बनती है । इतना विशेष है कि उपशमश्रेणिमे स्पर्द्ध कगत लोभका बादरकृष्टिकरण न होकर सीधा सूक्ष्मकृष्टिकरण होता है । यह ज्ञातव्य है कि बादरलोभ स्पर्द्ध कगत होता है तथा उसके सूक्ष्मकरणकी प्रक्रिया ही सूक्ष्मकृष्टिकरण कहलाती है।
१ क. पा. सु. पृ. ७०१-७०२; ज. ध. पु. १३ पृ. ३०६ । २ से काले विदियतिभागस्स पढमसमये लोभसंजलणाणुभागसंतकम्मस्स जं जहण्णफय तस्स हैटेवादो
अणुभागकिट्टीअो करेदि । तासिं पमाणमेयफद्दय वग्गणाणमणतभागो। (ज ध. मू पृ १८५६) ३. ज. ध पु. १३ पृ ३०७-८ । ४ क. पा. सुत्त पृ. ७०२ ।