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१६४ ] लदिवसार
[ गाथा २०४ एब उत्कृष्टस्थान यथायोग्य मन्दकपायवालेके होता है ।।२००॥
प्रतिपद्यमानस्थान आर्य व म्लेच्छकी अपेक्षा दो प्रकारका है सो उनका जघन्य स्यान तो मिथ्यादृप्टिसे सयमी होनेवाले जोवके और उत्कृष्टस्थानयुगल देशसयतसे नयमी हुए जीवके होता है । प्रतिपद्यमानस्थानोके ऊपर जो अनुभयस्थान है वे सामायिक
दोपम्यापना-सयम सम्बन्धी होते है । उन दोनो सयमोके जघन्य व उत्कृष्टस्थानो के मध्य परिहारविशुद्धिसयमके स्थान है ।।२०१॥
परिहारविशुद्धिसयमका जघन्यस्थान सक्लेशवश सामायिक-छेदोपस्थापना नयममे गिरते हए जीवके चरम समय मे और परिहारविशुद्धिसयमका उत्कृष्टस्थान उनमे हो सर्वविशुद्र अप्रमत्तजीवके एकान्तवृद्धिके चरमसमयमे होता है ।।२०२।।
___ मामायिक-छेदोपस्थापनासयमका जघन्यस्थान मिथ्यात्वके सम्मुख हुए जीवके ग्यमसम्बन्धी चरमसमयमे होता है जो जघन्य सयमका स्थान ही है। सामायिक
बोपन्यापनासयमका उत्कृष्टस्थान क्षपकअनिवृत्ति करणके चरमसमयमें होता है । ग:मनाम्परायसयमका जघन्यस्थान सूक्ष्मसाम्परायोपशमकजीव जो उपशमशेरिणसे गिरते हाए मूमनाम्परायके चरम समयमे अनिवृत्तिकरणके सम्मुख है, उसके होता है ।।२०३॥
क्षीणकपायके सम्मुख हए सूक्ष्मसाम्परायक्षपकके अन्तिम समय में सूक्ष्ममाम्प रायसयमका उत्कृष्टस्थान होता है । यथाख्यातचारित्र सर्व सयमसामान्य मे मास्थान है, क्योकि उसके जघन्य आदि विकल्पो का अभाव है। प्रतिपात और प्रतिपद्यमान सम्बन्धी जितने भी स्थान कहे है वे सभी सामायिक-छेदोपस्थापनासयम सम्बन्धी ही कहे गये हैं, क्योकि सकलसयमसे भ्रष्ट होते हुए चरम समयमें और सकलनयमको गहग करनेके प्रथमसमयमे सामायिक-छेदोपस्थापना सयम ही होता है, अन्य परिहारविशुद्धि आदि सयम नही होते है ।
विशेपार्थ-००००००००००००००००००००० अन्तर । ये असंख्यातलोकप्रमाण नयमके प्रतिपातस्थान मिथ्यात्वको जानेवाले संयतके अन्तिमसमयमें होते है । बार नबंजघन्य प्रतिपातम्यान उत्कृप्ट सक्लेशसे मिथ्यात्वको जानेवाले सयतके अतिम मामे होता है। जघन्यमे अनन्तगुणीभूत इन्ही का उत्कृष्ट प्रतिपातस्थान तत्प्रायोग्य मानने मियायको जानेवाले सयतके अन्तिम समयमें होता है । ००००००००००० ००००००००००० । अन्तर । असयतसम्यक्त्वको जानेवाले संयतके ये प्रतिपातस्थान