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लब्धिसार
[ गाथा १६३ १४० सख्यातगणहानिवाले स्थितिकाण्डको मे से जो अन्तिम स्थितिकाण्डक है वह सख्यातगुणा है, क्योकि दुरापकृष्टिप्रमाण स्थितिसत्कर्मो को छोडकर पुन उपरिम संख्यात वहुभागके द्वारा इस स्थितिकाण्डककी प्रवृत्ति होती है ।।२२।। (गाथा १५६)
उससे पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्मके रहते हुए दूसरा स्थितिकाण्डक सख्यातगुणा है, क्योकि पूर्वके स्थितिकाण्डकसे पश्चादनुपूर्वी के अनुसार सख्यातगुणवृद्धिरूप संख्यातहजार स्थितिकाडक पीछे उतरकर यह काण्डक होता है ।।२३।। उससे जिस स्थितिकाण्डकके नष्ट होने पर दर्शनमोहनीयका पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्म शेष रहता है वह स्थितिकाण्डक सख्यातगुणा है । यद्यपि यह भी पल्योपमके सख्यातवेभागप्रमाण है, किन्तु पूर्वके स्थितिकाण्डकसे सख्यातगुणा है । गुणकार तत्प्रायोग्य संख्यात अङ्क है ॥२४॥ उससे अपूर्वकरणमे प्रथम स्थितिकाण्डक सख्यातगुणा है, क्योकि अपूर्वकरणके प्रथम समयमे ग्रहण किये गये स्थितिकाण्डकसे विशेष हीन क्रमसे तत्प्रायोग्य सख्यात अङ्कप्रमाण स्थितिकाण्डक-गुणहानिगर्भ सख्यातहजार स्थितिकाण्डकोंके व्यतीत होनेपर पूर्वका स्थितिकाण्डक उत्पन्न हुआ है और वहा पर स्थितिकाडक गुणहानियोका अस्तित्व प्रसिद्ध भी नहीं है, क्योकि अपूर्वकरणके भीतर प्रथम स्थितिकाण्डकसे संख्यातगुणा हीन भी स्थितिकाण्डक होता है इसलिए यह सख्यातगुणा है ऐसा सिद्ध हुआ ॥२५॥ ( गाथा १६०)
उससे पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्मके होनेपर उसके बाद होनेवाला प्रथम स्थितिकाण्डक सख्यातगुणा है, क्योकि जब तक पल्योपमप्रमाण स्थितिसत्कर्म प्राप्त नही होता तव तक अपूर्वकरणके कालमे और अनिवृत्तिकरणके कालमे प्राप्त होनेवाले सभी स्थितिकाण्डक पल्योपमके सख्यातवेभाग प्रमाण वाले होते है, परन्तु इस स्थितिकाडकमे पल्योपमके सख्यात बहु भागका घात होता है अत पूर्वके स्थितिकाडकसे यह संख्यातगुणा है ।।२६।। उससे पल्योपम स्थितिसत्कर्म विशेषाधिक है । अधस्तन शेष संख्यातवाभाग अधिक है ।।२७।। (गाथा १६१)
___ उससे अपूर्वकरणमे प्राप्त प्रथम उत्कृष्ट स्थितिकाडक विशेष सख्यातगुणा है । जघन्य स्थितिकाण्डक और उत्कृष्ट स्थितिकाण्डकके बीच विशेषका प्रमाण पल्योपमका सख्यातवाभाग हीन पृथक्त्वसागर है जो पल्यसे संख्यातगुणा है ।।२८। उससे अनिवृत्तिकरणके प्रथम समयमे प्रविष्ट जीवके दर्शनमोहनीयका स्थितिसत्कर्म सख्यातगुणा है, क्योकि वह सागरोपम शतसहस्रपृथक्त्व प्रमाण है ॥२६॥ (गांथा १६२)