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लब्धिसार
[ गाथा १६३
१३८ ]
उससे उत्कृष्ट अनुभागकण्डकका उत्कीरणकाल विशेष अधिक है, क्योकि सभी कर्मोके अपूर्वकरणके प्रथमसमय मे प्राप्त अनुभागकाण्डक सम्बन्धी उत्कीरणकाल यहा ग्रहण किया गया है । (२) उससे स्थितिकाण्डकका जघन्य उत्कीरणकाल और जघन्य स्थितिबन्धकाल ये दोनो तुल्य होकर भी सख्यातगुणे है, क्योकि एक स्थिति - काण्डक उत्कीरणकाल व स्थितिबन्धकाल के भीतर नागमोक्त संख्यातहजार ग्रनुभागकाण्डक उत्कीरंणकाल होते है । यहा सम्यक्त्वप्रकृतिका अन्तिम स्थितिकाण्डक उत्कीरणकाल तथा वही पर शेष कर्मोके भी स्थितिकाण्डक - उत्कीरणकाल और स्थितिबन्धका ल ग्रहण करने चाहिये । (३)
उनसे, उत्कृष्ट ये दोनो परस्पर तुल्य होकर भी, विशेष अधिक हैं, क्योकि अपूर्वकररणकें प्रथम समय सम्बन्धी स्थितिकाण्डक उत्कीरण व स्थितिबन्धकाल ये दोनो उत्कृष्टरूप से ग्रहण किये गये है || ४ || ( गाथा १५३ )
उनसे कृतकृत्यसम्यग्दृष्टिका कालं सख्यातगुंगा है, क्योकि कृतकृत्य सम्यग्दृष्टि के कालमे सख्यातहजार स्थितिबन्ध होते है ॥५॥ उससे सम्यक्त्व प्रकृतिका क्षपणकाल सख्यातगुरणा हैं, क्योकि मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृतियोका क्षयंकर पुन आठवर्ष प्रमाण स्थितिसत्कर्मका क्षय करनेवाले जीवका कलि ग्रहण किया गया है ॥ ६ ॥ उससे अनिवृत्तिकरणका काल सख्यातगुणा है, क्योकि कररणके सख्यात बहुभाग जाकर सख्यातवे भाग शेष रहने पर सम्यक्त्व प्रकृतिकी क्षपरणाके कालका प्रारम्भ होता है ॥७॥ उससे अपूर्वकरणकाल संख्यातगुणा है, क्योंकि अनिवृत्तिकरण के कालसे अपूर्वकरण के कालका सर्वत्र ' सख्यातगुणे रूपसे अवस्थान होनेका नियम है | उससे गुणश्रेणि निक्षेप विशेष अधिक है, क्योकि अपूर्वकरणके प्रथम- समय से लेकर अपूर्वकरण और श्रनिवृत्तिकरण के कालसे' विशेष अधिक प्रमाण गुणश्रेणिश्रायामका निक्षेप विक्षि है | | ( गाथा १५४)
उससे सम्यक्त्वप्रकृतिका द्विचरम स्थितिकांडक संख्यातंगुरणा है । यह भी मात्र अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होकर पिछले पदसे सख्यातगुणा है || १० | उससे उसका अन्तिम स्थितिकाण्डक सख्यातगुणा है ।। ११ ।। उससे प्राठवर्ष प्रमाण स्थितिसंत्कर्म शेष रहने पर जो प्रथमस्थितिकाण्डक होता है वह संख्यातगुणा है । यहां संख्यात समय गुणकार है ।।१२।। उससे जघन्य आवाधा सख्यातगुणी है । यहां पर कृतकृत्य सम्यग्दृष्ट प्रथमत्तमयमे ज्ञानावरणादि कर्मसम्बन्धी जघन्य आबाधाका ग्रहण है ।।१३।। उससे