________________
लब्धिसार
[ १३६ उत्कृष्ट आबाधा सख्यातगुणी है, क्योकि अपूर्वकरणके प्रथम समयमे होनेवाले सख्यातगुणे स्थितिबन्धकी आवाधाका ग्रहण है । ये सब अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है ।।१४। उससे सम्यक्त्वप्रकृतिकी आठवर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्म सख्यातगुणा है, क्योकि अन्तर्मुहूर्तकालसे आठवर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्म सख्यातगुणा सिद्ध है ।।१५।। (गाथा १५५)
उससे सम्यक्त्वप्रकृतिका असख्यातवर्षप्रमाण अन्तिम स्थितिकाण्डक असख्यातगुणा है, क्योकि वह पल्यके असख्यातवेभागप्रमाण है ॥१६॥ उससे सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृतिका असख्यातवर्षप्रमाण अन्तिम स्थितिकॉड़क विशेष अधिक है । एक प्रावलिकम आठवर्ष विशेषका प्रमाण है, इसका कारण सुगम है ।।११७।। (गाथा १५६)
उससे मिथ्यात्वका क्षय होनेपर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका प्रथम स्थितिकाण्डक असख्यातगुणा है, क्योकि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अन्तिम स्थितिमण्डकसे द्विचम् स्थितिकाडा असंख्यातगुणा है । इसप्रकार त्रिचरम और चतुश्चरम आदि क्रमसे सख्यातहजार स्थितिकाण्डक नीचे जाकर मिथ्यात्व का क्षय होने पर सम्यक्त्व और सम्यरिमथ्यात्वका तत्सम्बन्धी यह प्रथम स्थितिकाडक है। इसलिये यह स्थितिकाण्डक असख्यातगुणा है ॥१८॥ उससे मिथ्यात्व, सत्कर्मवालेके सम्यक्त्व और सम्यरिमथ्यात्वका अन्तिम स्थितिकापडक. असख्यातगुरणा है, क्योकि मिथ्यात्वः सत्कर्मवालेके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जो अन्तिम स्थितिकाण्डक है, वह पूर्वके स्थितिकाडकसे अनन्तर अधस्तनवर्ती, होनेसे पूर्वके स्थितिकाण्डकसे असख्यातगुणा है ॥ १६ ॥ ( गाथा १५५ ),
उससे मिथ्यात्वका अन्तिम, स्थितिकाण्डक विशेष अधिक है, क्योकि मिथ्यात्वके उदयावलि. बाह्य समस्त स्थितिसत्कर्मका ग्रहण होता है, परन्तु सम्यक्त्व और सम्यरिमथ्यात्वकी. उस समय, अधस्तन-पल्योपमके असख्यातवेभागप्रमाण स्थितियोको छोडकर, उपरिम बहुभागप्रमाण स्थितियोंका ग्रहण,होता है। इस कारण अधस्तन असख्यातवेभाग मात्रका प्रवेश होकर मिथ्यात्वका अन्तिम स्थितिकाण्डक विशेष अधिक हो गया है.॥२०॥ (गाथा- १५८).
उससे मिथ्यात्व सम्यक्त्व: और सम्यग्मिथ्यात्वके असंख्यातगुण हार्निवाले स्थितिकाण्डकोमें से प्रथम स्थितिकाण्डक असख्यातगुणा है, क्योकि पूर्वके स्थितिकाडकसे । सख्यातहजार, स्थितिकाण्डका असख्यातगुरणे, क्रमसे. नीचे उतरकर दूरापकृष्टि सनक
स्थितिके असख्यात-बहुभाराके द्वारा इस स्थितिकाण्डककी प्रवृत्तिाहोती है ।।२१।। उससे