________________
गार्थी ७६] क्षपणासार
[६१ आदिक्रमसे बढते जाते हैं । यदि प्रथमस्पर्धकको आदिवर्गणाआयाम और द्वितीयस्पर्धक का आदिवर्गणाआयाम सदृश ( समान ) होते तो प्रथमस्पर्धककी आदिवर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदसमुदायसे द्वितीयस्पर्धकको आदिवर्गणांका अविभागप्रतिच्छेदसमूह दुगुणा होता है, किन्तु दोनों आदिवर्गणाआयाम सदृश नहीं है, क्योकि प्रथमस्पर्धककी आदिवर्गणाआयांमसे द्वितीयस्पर्धकका आदिवर्गणाआयाम विशेषहीन है । जितना हीन है उसको दुगुणे अविभागप्रतिच्छेद (प्रथमस्पर्धककी आदिवर्गणाके एक परमाणुगतअविभागप्रतिच्छेदका दुगुणा.) से गुणा करनेपर जो अनन्तवें भागप्रमाण गुणनफल प्राप्त होता है उतना दुगुणा होने में कम है। जिनकी वृद्धि हुई हैं ऐसे शेष अविभागप्रतिच्छेद अनन्त बहुभागप्रमाण है, क्योंकि अनन्तवांभाग घटानेपर अनन्तबहुभाग शेष रहता है। इसप्रकार यह सिद्ध हो जाता है कि प्रथमस्पर्धकको आदिवर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदसमूहसे द्वितोयस्पर्धकको आदिवर्गणाका अविभागप्रतिच्छेदपुंज अनन्तबहुभाग अधिक है । इसीप्रकार द्वितीयस्पर्धकको आदिवर्गणासे तृतोयस्पर्धककी आदिवर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद कुछकम आधेसे अधिक है। तृतीयस्पर्धकको आदिवर्गणासे चतुर्थस्पर्धकको आदिवर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद कुछकम तृतीयभागसे अधिक हैं तथैव पंचमादिस्पर्ध कोंमें कुछ कम चतुर्थादिभाग अधिक यथाक्रम जानना चाहिए । जघन्य परितासंख्यातस्पर्धककी 'आदिवर्गणामें नीचे के स्पर्धकको आदिवर्गणासे कुछकम उत्कृष्टसंख्यातवेंभाग (अविभागप्रतिच्छेद) अधिक हैं। संख्यातभागकी वृद्धि यहांपर समाप्त हो जाती है । इससे आगे यथाक्रम असंख्यातवे भागको वृद्धि होती है । जघन्यपरीतानंतस्पर्धकम अपनेसे नोचेके स्पर्धक से उत्कृष्टअसंख्यातवेभागवृद्धि होती है। यहां पर असंख्यातभागकीवृद्धि समाप्त हो जाती है। इससे ऊपर अपूर्वस्पर्शकके चरमस्पर्धकतक अनन्तवेंभागवृद्धि होती है । जितने स्पर्धक ऊपर चढ़ हैं उनमेसे एक कम करके उससे अधस्तनवर्ती स्पर्धाकको वर्गणाको भाजित करनेपर जो लब्ध प्राप्त हो उससे कुछ कम ऊपरितन स्पर्धकमें विशेषअधिकका प्रमाण होता है ऐसा सर्वत्र जानना चाहिए । इस प्रकार अपूर्वस्पर्धकका चरमस्पर्धक द्विचरमस्पर्णकसे कुछकम अनन्तवेभाग विशेषअधिक है । इस सम्बन्धमें अल्पबहुत्व इसप्रकार है-प्रयमसमयमें रचित अपूर्वस्पर्धकके प्रथमस्पर्धकको आदिवर्गणा अल्प है, चरमअपूर्वस्पर्धककी आदिवर्गणा अनन्तगुणी है, क्योकि प्रथम अपूर्वस्पर्धकसे अनन्त (अभव्योंसे अनन्तगुणे और सिद्धोंके अनन्तवेभाग) स्पर्धक चढ़कर चरमस्पर्धक प्राप्त होता है। पूर्वस्पर्धकको आदिवर्गणा अनन्तगुणो है, क्योकि