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गाथा १३० ] लब्धिसार
[ ११६ अर्थ-मिश्रद्विक अर्थात् मिश्रमोहनीय (सम्य ग्मिथ्यात्व) और सम्यक्त्वमोहनीय इन दोनो प्रकृतियोकी अपनी अपनी अन्तिमफालियोका द्रव्य कुछकम डेढगुणहानि गुणित समयप्रवद्धप्रमाण है । पूर्वोक्त प्रकार उन दोनो अन्तिमफालियोके द्रव्यमे पल्यके असख्यातवेभागका भाग देने पर एक भाग गुणश्रेणी निक्षेपमे दिया जाता है ।
गुणश्रेणि आयामरूप अन्तर्मुहूर्तकाल कम आठवर्ष प्रमाण ऊपरकी स्थितियो में चरमावलिपर्यन्त ? सदृश चय से हीन इस रचनारूप शेष बहुभाग द्रव्य दिया जाता है।
__ सम्यक्त्वमोहनीय की आठ वर्ष स्थिति करनेके समयसे लेकर ऊपर सर्वत्र उदयादि अवस्थिति गुणश्रेणि आयाम है तथा सम्यक्त्वमोहनीयकी स्थितिमे स्थितिखड का अायाम अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है । इसके आगे एक-एक स्थितिकाडक द्वारा अन्तर्मुहूर्तअन्तर्मुहूर्त स्थिति घटाता है ।
विशेषार्थ- जिस समय सम्यक्त्वप्रकृतिका स्थितिसत्कर्म आठवर्षप्रमाण होता है, उस समयमें (पतित) होनेवाली अपनी अन्तिमफालिके द्रव्यके साथ सम्यग्मिथ्यात्व की अन्तिमफालिको ग्रहणकर सम्यक्त्वके उपरिम आठवर्षप्रमाण निषेकोमे सिचन करता हुग्रा' उदयमे स्तोक प्रदेशपु जको देता है। उससे ऊपरवर्ती समयसम्बन्धी स्थितिमे असख्यातगुणे प्रदेशपु जको देता है । इसप्रकार पहलेके गुणश्रेरिणशीर्षके प्राप्त होने तक प्रत्येक स्थितिमे उत्तरोत्तर असख्यातगुणे प्रदेशपुजको देता है । सम्यग्मिथ्यात्वसम्बन्धी अन्तिमफालिके कुछकम डेढगुणहानि गुणित समयप्रबद्धप्रमाण द्रव्यको (अपकर्षणभागहारसे असख्यातगुणे) पल्योपमके असख्यातवे भाग से खण्डित कर एक भागमात्र द्रव्य को गुणश्रेणिमे निक्षिप्तकर पुन शेष बहुभागप्रमाण द्रव्यको गोपुच्छाकार से गुणश्रेरिणशीर्ष से ऊपर अन्तर्मुहर्तकम आठ वर्षकी स्थितियोमे निक्षिप्त करता है। इसप्रकार गुणश्रेणिशीर्ष से अनन्तर उपरिम प्रथम स्थिति मे असख्यातगुणे प्रदेशपु ज का निक्षेप होता है, क्योकि द्रव्य बहुभागप्रमाण है और स्थितियायाम स्तोक है। उससे ऊपर सर्वत्र (अनन्तर उपनिधाके अनुसार) आठ वर्षप्रमाण स्थितिके अन्तिम निषेकके प्राप्त होनेतक विशेषहीन विशेपहीन द्रव्य दिया जाता है । आठवर्षप्रमाण सर्व गोपुच्छोके
१. जब सम्य ग्मिथ्यात्व की चरमफालीका सक्रमण सम्यक्त्वमे होता है, तब सम्यक्त्वका ८ वर्पप्रमाण
ग्थितिसत्कर्म होता है । (ज. ध पु ३ पृ २०५)