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लब्धिसार
[ गाथा १३२-१३३ आठवर्ष को स्थितिके पश्चात् कहांतक और किस विधिसे द्रव्यनिक्षेप होता है इसका कथन करते हैं
अडवस्ले उवरिम्मि वि दुचरिमखंडस्स चरिमफालित्ति। संखातीदगुणक्कम विशेषहीणक्कम देदि ॥१३२॥
अर्थ-आठवर्ष की स्थिति करनेके अनन्तर समयसे लेकर द्विचरमकाण्डककी अन्तिमफालिके पतन समयतक उदयादि अवस्थित गुणश्रेरिणायाममे असख्यातगुणा क्रम लिये हुए तथा ऊपर अन्तर्मुहूर्तकम आठवर्षप्रमाण स्थितियोमे विशेषहीन अर्थात् चय घटता क्रम लिये निक्षेपण होता है अर्थात् दिया जाता है ।
विशेषार्थ-आठवर्षकी स्थितिसत्कर्मके अनन्तरसे लेकर अन्तर्मुहर्तप्रमाण स्थितिकाण्डकघात के द्वारा अपवर्तित होनेवाली सम्यक्त्वकी स्थितियोमे जो प्रदेश पुज होता है, अपकर्षण भागहारके प्रतिभागद्वारा उसे ग्रहणकर उदयादि अवस्थित गुणश्रेणिमे निक्षिप्त करता हुआ उदयमे स्तोक प्रदेशपु जको देता है। उससे अनन्तरसमय मे असख्यातगुणा देता है । इसप्रकार क्रमसे गुणश्रेरिणशीर्षके अधस्तनसमयके प्राप्त होने तक असख्यातगुणित क्रमसे सिचन करता है । पुन' इससे उपरिम अनन्तर एक स्थितिमे भी असख्यातगुणे प्रदेशपु ज का सिचन करता है, क्योकि यहां अवस्थित गुणश्रेणि निक्षेपकी प्रतिज्ञा की गई है । इससमय अपकर्षित हुए द्रव्यके बहुभागको अन्तर्मुहूर्तकम आठवर्षों के द्वारा भाजितकर वहा जो एकभाग प्रमाण द्रव्य प्राप्त हो, विशेष अधिक करके उसे इस समयके गुणश्रेणिशीर्षमे निक्षिप्त करता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है। इससे ऊपर सर्वत्र प्रतिस्थापनावलिमात्रसे अन्तिमस्थितिको नही प्राप्त होने तक विशेपहीन-विणेपहीन द्रव्यका सिंचन करता है। इसप्रकार यह क्रम द्विचरम स्थितिकाण्डकतक होता है ।
आठवर्ष प्रमाण स्थितिसत्त्व अवशिष्ट करनेके प्रथम (पूर्व) समयमें, आठवर्षप्रमाण स्थितिसत्त्व करने के समयमें, आगामो समयमें पाये जानेवाले विधान आदिका
कथन
अडवस्से संपहियं पुबिल्लादो असंखसंगुणियं ।
उवरिं पुण संपहियं असंखसंखच भागं तु ॥१३३॥ ज घ पु १३ पृ ६४-७० । क पा. सुत्त पृ. ६५२ ।
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