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गापा १४३ ] लब्धिसार
[ १२६ विशेषार्थ-सम्यक्त्व मोहनीयकी उदयावलि से बाह्य सभी स्थितियो मे से प्रदेगो को अपकर्पित कर वर्तमान गुणश्रोणि मे निक्षिप्त करता हुआ उदय स्थितिमे अल्प प्रदेश पुज को दिया जाता है, क्योकि आठवर्षप्रमाण स्थितिसत्कर्म से लेकर उदयादि गुणोगिकी प्रतिमाके प्रवर्त्तमान होनेमे कोई रुकावट नही पाई जाती । पुनः तदनन्तर उपरिम स्थिति मे असख्यातगुणे प्रदेशपुज को देता है । यहा पर गुणकार तत्प्रायोग्य पत्योपमका असख्यातवा भाग है । इसप्रकार तब तक असख्यातगुणे प्रदेशपुजको देता है जबतक चरमसमय स्वरूप स्थितिकाण्डक की प्रथम स्थिति प्राप्त नहीं होती । यही स्थिति गुण)गिशीर्ष बन गई है, यह प्रथम पर्व है। अब तक अपकर्षित द्रव्यके संख्यातवे भाग को ही गुणश्रेणि मे देता था, किन्तु यहा से असख्यात बहुभाग को गुणधेगिमे निक्षिप्त करने लगा और शेष असख्यातवे भागको उपरिम स्थितियोके समयमे अविरोधपूर्वक निक्षिप्त करता है । इस शेप बचे असख्यातवे भाग मे से असख्यातवे भागको पृथक रखकर वहा प्राप्त बहुभाग को स्थितिकाण्डकके भीतर प्राप्त हए अन्तर्मुहर्त प्रमाण गुणश्रोणि अध्वानसे भाजित कर वहां प्राप्त एक खण्डको विशेष अधिक कर इस समयके गुरगयरिगशीर्षसे उपरिम अनन्तर स्थितिमे अर्थात स्थितिकाण्डककी श्रादि स्थितिमे दिया जाता है । उसके पश्चात् प्राचीन गुणश्रेणिशीर्ष तक यहा के बहुभाग द्रव्यको उत्तरोत्तर विशेष हीन दिया जाता है, यह दूसरा पर्व है ।
पृथक रखे हुए असख्यातवे भाग प्रमाण द्रव्यको अधस्तन आयामसे सख्यातगणे उपरिम समस्त आयामसे भाजितकर जो एक भाग प्राप्त हो उसे विशेष अधिक करके वहा की गोपुच्छा मे सिचितकर उससे ऊपर अतिस्थापनावलि से पूर्वतक विशेषहीन क्रमसे एक गोपुच्छ श्रेणिरूप से दिया जाता है, यह तीसरा पर्व है। इसप्रकार यहां पर दीयमान द्रव्यकी तीन श्रेणिया हो गई' । इसप्रकार स्थितिकाण्डकके उत्कीरण कालके द्विचरम समय तक अर्थात् द्विचरम फालि तक जानना चाहिए।
___साम्प्रतिकगुरणश्रेणिके स्वरूप निर्देशपूर्वक चरमफालिके पतनकालका निर्देश करते हैं।
उदयादिगलिदसेसा चरिमे खंडे हवेज्ज गुणसेढी । फाडेदि चरिमफालि अणियट्टीकरणचरिमम्हि ॥१४३॥
१. ज. ध पु १३ पृ. ७४-७७ ।