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लब्धिसार
[ गाथा ३६-३७ जगन्तिनसमयवर्ती परिणाम अध अर्थात् अधस्तनसमयवर्ती परिणामोमे समानताको प्राप्त होते है अत अध प्रवृत्त यह सजा सार्थक है'।
आगे अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके स्वरूपका निरूपण करते हैं'समए समए भिण्णा भावा तम्हा अपुवकरणो दु। 'मणियट्टीवि तहं वि य पडिसमय एक्कपरिणामो ॥३६॥
अर्थ-प्रतिसमय भिन्न भाव होते है इसलिये यह अपूर्वकरण है और प्रतिममय एक समान ही परिणाम होते है अत वह अनिवृत्तिकरण है ।
___ विशेषार्थ-जिस करणमे प्रतिसमय अपूर्व अर्थात् असमान व नियमसे अनन्तगणरूपसे वद्धिगत करण अर्थात् परिणाम होते है वह अपूर्वकरण है । इसकरण में होनेवाले परिणाम प्रत्येक समयमे असख्यातलोकप्रमाण होकर भी अन्यसमयमें स्थित परिणामोके सदृश नही होते यह उक्तकथनका भावार्थ है ।
जिसकरण मे विद्यमान जीवोके एकसमयमें परिणाम भेद नही है वह अनिवृत्तिकरण हे । अनिवृत्तिकरणमे एक-एक समयमे एक-एक ही परिणाम होता है, क्योकि यहा एकसमयमे जघन्य व उत्कृष्टभेदका अभाव है । एकसमयमें वर्तमानजीवोके परिणामोकी अपेक्षा निवृत्ति या विभिन्नता जहा नही होती वे परिणाम अनिवृत्तिकरण कहलाते हैं।
आगे अधःप्रवृत्तकरणसम्बन्धी विशेष कथन ५ गाथाओंमें करते हैंगुणसेढी गुणसकम ठिदिरसखंडं च णत्थि पढमम्हि ।
पडिसमयमणंतगुणं विसोहिवड्डीहिं वड्ढदि हु ॥३७॥ १. घ. पु६ प २१७ । २. गो जी गा ५१, प्रा पं स अ १ गा. ८, ध पु. १ पृ.५३। ३. 'होति अगियदिरणोते, पडिसमय जेस्सिमेक्कपरिणामा' गो. जी. गा. ५७; घ. पु १ पृ. १८६; __घ १६ पृ २२, प्रा. पं. स अ. १ गा. २२ । ४ प पा सुन पृ. ६२१ । ५ ज. पु. १२ पृ. २३४ । ६ उ. पु. १२ पृ २:४। ७ पुष २२१ । ८. प. पु. ६१ २२२ ।