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[ गाथा ६१ लेब्धिसार ४] इस प्रकार अनुभागापेक्षा अनन्तवेभाग रूप क्रम है । अर्थात् मिथ्यात्वप्रकृति के अनुभाग से सम्यन्मिथ्यात्वका अनुभाग अनन्तगुणा हीन होता है और सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के अनुभागमे सम्यक्त्वप्रकृति का अनुभाग अनन्तगुणा हीन होता है ।
अथानन्तर गणसंक्रमणको सीमा और विध्यातसंक्रमके प्रारम्भका कथन करते हैं
पढमादो गुणसंकमचरिमोति य सम्ममिस्ससम्मिस्से । अहिगदिणाऽसंखगुणो विज्झादो संकमो तत्तो ॥११॥
अर्थ--गुणसक्रम कालके प्रथम समय से अन्तिम समय पर्यन्त प्रतिसमय सर्प की गति के समान असख्यातगुणे क्रम सहित मिथ्यात्वरूप द्रव्य है वह सम्यक्त्व और मिश्रप्रकृति रूप परिणमता है । इसके (गुरंगसंक्रमण के) पश्चात् विध्यात सक्रमण होता है।
विशेषार्थ -प्रथमसमयवर्ती उपशान्त दर्शनमोहनीय जीव के द्रव्यमे से सम्यग्मिथ्यात्व मे बहुत प्रदेशपुञ्ज को देता है, उससे असख्यातगुणे हीन प्रदेशपुञ्ज को सम्यक्त्व प्रकृति मे देता है । प्रथम समय मे सम्यग्मिथ्यात्व मे दिये गये प्रदेशों से द्वितीय समय मे सम्यक्त्वप्रकृति मे असंख्यातगुणित प्रदेशो को देता है और उसी दूसरे समयमे सम्यक्त्वप्रकृति में दिये गये प्रदेशो की अपेक्षा सम्यग्मिथ्यात्व मे असख्यातगुरिणत प्रदेशो को देता है । इसप्रकार इस परस्थान अल्पबहत्व विधि से अन्तर्मुहर्तकाल पर्यत गुणसक्रमण के द्वारा मिथ्यात्व के द्रव्य मे से सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व को पूरित करता है । यहा गुणसक्रम भागहार प्रतिभाग है जो पल्योपम के असख्यातवे भाग प्रमाण है। इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्व के प्रदेशों के आने के निमित्तरूप गुरासक्रम भागहार से सम्यक्त्व के प्रदेशो के आने का निमित्त गुरगसक्रम भागहार असल्यातगुणा है । स्वस्थान अल्पवहुत्व का कथन करने पर प्रथम सेमय मे सम्यग्मिथ्यात्वे में सक्रमित हुआ प्रदेशपुञ्ज स्तोक है। दूसरे समय मे सक्रमित हुआ प्रदेशपुञ्ज अमन्यात गुगा है । यह असंख्यातगुणा कम गुणसंक्रमण के अन्तिम समय तक जानना चाहिए । इसीप्रकार सम्यक्त्व का भी स्वस्थान अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिए । यहा १. प. पुपृ. २३५॥
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घ पु. ६ पृ. २३५; ज. प. पु १२ पृ. २८२ ।